الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
 

الصفحة - من الجزء (عرض الصورة)


futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 538 - من الجزء 1

بقدرتك و أسألك من فضلك العظيم فإنك تقدر و لا أقدر و تعلم و لا أعلم و أنت علام الغيوب اللهم إن كنت تعلم أن هذا الأمر و تسمى حاجتك خير لي في ديني و معاشي و عاقبة أمري أو قال عاجل أمري و آجله فاقدره لي و يسره لي ثم بارك لي فيه و إن كنت تعلم أن هذا الأمر و تذكر حاجتك شر لي في ديني و معاشي و عاقبة أمري أو قال عاجل أمري و آجله فاصرفه عني و اصرفني عنه و أقدر على الخير حيث كان ثم أرضني به

[شرح دعاء الاستخارة بلسان العارفين]

فالعارف إذا استخار ربه في حاجة معينة كانت أو مبهمة فيحضر في قلبه عند قوله اللهم أي يا الله اقصد فأدخل هنا الإرادة لأن القصد الإرادة فحذف الهمزة و اكتفى بالهاء من اللهم لقربها في المخرج و المجاورة و ليدلك بذلك على عظيم الوصلة فإن شرح اللهم أي يا اللّٰه أمنا بالخير أي اقصدنا و قوله إني آنية الشيء حقيقته كناية عن نفسه و قوله أستخيرك بعلمك يقول أي يا اللّٰه أقصد حقيقتي بما اختاره علمك مما لي فيه خير فإنك تعلم ما يصلح لي من الخير و لا أعلم هذا الذي توجهت في طلبه و تقدر على إيجاده و لا أقدر على ذلك فإن كان لي في فعله و ظهور عينه خير فقد علمته فاقدره لي أي افعله لي و إن كان الخير لي في تركه و عدم ظهور عينه فاصرفه عني لكونى استحضرته في خاطري و تخيلته فقد حصل ضرب من الوجود و هو تصوره في خيالي فلا تجعله حاكما علي بظهور عينه فهذا معنى قوله فاصرفه عني ثم قال و اصرفني عنه أي حل بيني و بينه و اجعل بيني و بينه الحجاب الذي بين الوجود و العدم حتى لا أستحضره و لا يحضرني عينا و تخيلا و قوله و استقدرك بقدرتك لأن القدرة صفة الإيجاد و هي أخص تعلقا من العلم فيصرف بالعلم و يوجد بالقدرة و لا يصرف بها فقدم العلم على القدرة لأنه قد يكون له الخيرة في ترك ما طلب فعله و وجوده فكأنه يقول و إن كان في تحصيل ما طلبت تحصيله خير لي فإني أستقدرك بقدرتك أي أقدرني على تحصيله و إن كان ممن يقول بنسبة الفعل للعبد كالمعتزلة و تكون الإضافة في قوله بقدرتك أي بالقدرة التي تخلقها في عبادك و إن كان ممن لا يقول بنسبة الفعل إلى العبد فقوله بقدرتك يعني قدرة الحق التي هي صفته المنسوبة إليه بحكم الصفة لا بحكم الخلق و قوله فإنك تقدر و لا أقدر يتجه هذا قول من الطائفتين أي فإنك تقدر أن تخلق لي القدرة على فعله إن كان قد علمت إن لي فيه خيرا و قد يريد الإخبار عن حقيقة نفي القدرة عن العبد فيقول فإنك تقدر على إيجاده و تحصيل ما طلبته و لا أقدر أي ما لي قدرة أحصله بها لعلمه أن القدرة الحادثة ما لها التكوين و لا تتعدى محلها و قوله و أرضني به أي اجعل الفرح و السرور عندي بحصوله أو بعدم حصوله من أجل ما اخترته لي في سابق علمك و أقدر لي الخير حيث كان و أنت أعلم بالأماكن و الزمان و الأحوال التي لي الخير فيها من غيرها ف‌ ﴿إِنَّكَ أَنْتَ عَلاّٰمُ الْغُيُوبِ﴾ [المائدة:109] أي ما غاب عنا من ذلك تعلمه أنت و لا أعلمه أنا ثم لتعلم إن العلم بالأمر لا يتضمن شهوده فدل إن نسبة رؤيتك الأشياء غير نسبة علمك بها فالنسبة العلمية تتعلق بالشهادة و الغيب فكل مشهود معلوم ما شهد منه و ما كل معلوم مشهود و ما ورد في الشرع قط إن اللّٰه يشهد الغيوب و إنما ورد يعلم الغيوب و لهذا وصف نفسه بالرؤية فقال ﴿أَ لَمْ يَعْلَمْ بِأَنَّ اللّٰهَ يَرىٰ﴾ [العلق:14] و وصف نفسه بالبصر و بالعلم ففرق بين النسب و ميز بعضها عن بعض ليعلم ما بينها و لما لم يتصور أن يكون في حق اللّٰه غيب علمنا إن الغيب أمر إضافي لما غاب عنا فكأنه يقول من يقول و أنت علام الغيوب أي ما غاب عنا و كذلك عالم الغيب و الشهادة أي ما غاب عنا و ما نشهده و يشهده و ما يلزم من شهود الشيء العلم بحده و حقيقته و يلزم من العلم بالشيء العلم بحده و حقيقته عدما كان أو وجودا و إلا فما علمته و الأشياء كلها مشهودة للحق في حال عدمها و لو لم تكن كذلك لما خصص بعضها بالإيجاد عن بعض إذ العدم المحض الذي ليس فيه أعيان ثابتة لا يقع فيه تمييز شهود بخلاف عدم الممكنات فكون العلم ميز الأشياء بعضها عن بعض و فصل بعضها عن بعض هو المعبر عنه بشهوده إياها و تعيينه لها أي هي بعينه يراها و إن كانت موصوفة بالعدم فما هي معدومة لله الحق من حيث علمه بها كما إن تصور الإنسان المخترع للأشياء صورة ما يريد اختراعها في نفسه ثم يبرزها فيظهر عينها لها فاتصفت بالوجود العيني و كانت في حال عدمها موصوفة بالوجود في الوجود الذهني في حقنا و الوجود العلمي في حق اللّٰه فظهور الأشياء من وجود إلى وجود من وجود علم إلى وجود عين و المحال الذي هو العدم المحض ما فيه أعيان تمييز فهذا معنى بعض ما يتضمنه دعاء الاستخارة و أما قوله و يسره لي يريد الأسباب التي هي علامات و دلائل على تحصيل المطلوب


مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2266 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2267 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2268 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2269 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2270 من مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لطبعة القاهرة (دار الكتب العربية الكبرى) - المعروفة بالطبعة الميمنية. وقد تم إضافة عناوين فرعية ضمن قوسين مربعين.

 

الصفحة - من الجزء (اقتباسات من هذه الصفحة)

[الباب: ] - (مقاطع فيديو مسجلة لقراءة هذا الباب)

البحث في كتاب الفتوحات المكية

الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!