الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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إلا سيده و لهذا يسمى الترمذي الحكيم الحق سبحانه ملك الملك غير سيده ما يملك عبد فإن العبد في كل حال يقصد سيده فلا يزال يصرف سيده بأحواله في جميع أموره و لا معنى للملك إلا التصريف بالقهر و الشدة و مهما لم يقم السيد بما يطلبه به العبد فقد زالت سيادته من ذلك الوجه و أحوال العبد على قسمين ذاتية و عرضية و هو بكل حال منها يتصرف في سيده و الكل عبيد اللّٰه فمن كان دنيء الهمة قليل العلم كثيف الحجاب غليظ القفا ترك الحق و تعبد عبيد الحق فنازع الحق في ربوبيته فخرج من عبوديته فهو و إن كان عبدا في نفس الأمر فليس هو بعبد مصطنع و لا مختص فإذا لم يتعبد أحدا من عباد اللّٰه كان عبدا خالصا لله فتصرف في سيده بجميع أحواله فلا يزال الحق في شأن هذا العبد خلاقا على الدوام بحسب انتقالاته في الأحوال «قال ﷺ خادم القوم سيدهم» لأنه القائم بأمورهم لأنهم عاجزون عن القيام بما تقتضيه أحوالهم فمن عرف صورة التصريف عرف مرتبة السيد من مرتبة العبد فيتصف العبد بامتثال أمر سيده و السيد بالقيام بضرورات عبده فلا يتفرغ العبد مع ما قررناه من حاله مع حال سيده إن يقتنى عبدا يتصرف فيه لأنه يشهد عيانا إن ذلك العبد الآخر يتصرف في سيده تصرفه فيعلم أنه مثله عبد لله و إذا كان عبدا لله لم يصح أن يتعبده هذا العبد فما ملك عبد إلا بحجاب لقيت سليمان الدنبلي فأخبرني في مباسطة كانت بيني و بينه في العلم الإلهي فقلت له أريد أن أسمع منك بعض ما كان بينك و بين الحق من المباسطة فقال نعم باسطني يوما في سري في الملك فقال لي إن ملكي عظيم فقلت له ملكي أعظم من ملكك فقال لي كيف تقول فقلت له مثلك في ملكي و ليس مثلك في ملكك فمن أعظم ملكا فقال صدقت أشار إلى التصريف بالحال و الأمر و هو ما قررناه فإذا علمت هذا علمت قدرك و مرتبتك و معنى ربوبيتك و على من تكون ربا في عين عبد و هو بالعلم قريب و بالحال أقرب و ألذ في الشهود ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

«الباب الخمسون و أربعمائة في معرفة منازلة

«من ثبت لظهوري كان بي»

لأنه
سبحانه كان به لا بى و هو الحقيقة و الأول مجاز»

إذا ثبت العبد في موطن *** فإن الإله هو الثابت

إذا قلت يا رب هب لي كذا *** و أعطاكه فهو القانت

إذا لم يكن غيره عيننا *** فبالله قل لي من المائت

ترجم عنه لسان بدا *** فهو به الناطق الساكت

و لم يبق للعبد من عينه *** لوحدته نفس خافت

و ليس له في الورى حاسد *** إذا كان هذا و لا شامت

إذا جئت ليلا إلى منزلي *** و بت به فمن البائت

هو الحق بنطق في كونه *** بما شاءه و أنا الصامت

فلو لا اللجين و أمثاله *** لما فضل العسجد الصامت

تعجبت منه و من عزه *** إذا نكت العالم الناكت

و ليس يغار على عرضه *** فعبد الإله هنا الباهت

قال اللّٰه عز و جل ﴿كُلُّ شَيْءٍ هٰالِكٌ إِلاّٰ وَجْهَهُ﴾ [القصص:88]

[أن عباد اللّٰه على قسمين]

اعلم أن عباد اللّٰه الذين أهلهم اللّٰه له و اختصهم من العباد على قسمين عباد يكونون له به و عباد يكونون له بأنفسهم و ما عدا هؤلاء فهم لأنفسهم بأنفسهم ليس لله منهم شيء فلا كلام لنا مع هؤلاء فإنهم جاهلون و نعوذ بالله أن نكون من الجاهلين فأما العباد الذين هم له تعالى بأنفسهم فهم الذين تحققوا بقوله تعالى ﴿وَ مٰا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَ الْإِنْسَ إِلاّٰ لِيَعْبُدُونِ﴾ [الذاريات:56] فهم العبيد الصم الشداد الأشداء الرحماء بينهم : و علامتهم الاتصاف بجميع الأحوال من فناء و بقاء و محو و إثبات و غيبة و حضور و جمع و فرق إلى ما يقبله الكون من الأحوال و كذلك من نعوتهم التي تنسب إلى المقامات المذكورة من توكل و زهد و ورع و معرفة و محبة و صبر و شكر و رضاء و تسليم إلى سائر


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