الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿أَ لَمْ يَعْلَمْ بِأَنَّ اللّٰهَ يَرىٰ﴾ [العلق:14] و وصف نفسه بالبصر و بالعلم ففرق بين النسب و ميز بعضها عن بعض ليعلم ما بينها و لما لم يتصور أن يكون في حق اللّٰه غيب علمنا إن الغيب أمر إضافي لما غاب عنا فكأنه يقول من يقول و أنت علام الغيوب أي ما غاب عنا و كذلك عالم الغيب و الشهادة أي ما غاب عنا و ما نشهده و يشهده و ما يلزم من شهود الشيء العلم بحده و حقيقته و يلزم من العلم بالشيء العلم بحده و حقيقته عدما كان أو وجودا و إلا فما علمته و الأشياء كلها مشهودة للحق في حال عدمها و لو لم تكن كذلك لما خصص بعضها بالإيجاد عن بعض إذ العدم المحض الذي ليس فيه أعيان ثابتة لا يقع فيه تمييز شهود بخلاف عدم الممكنات فكون العلم ميز الأشياء بعضها عن بعض و فصل بعضها عن بعض هو المعبر عنه بشهوده إياها و تعيينه لها أي هي بعينه يراها و إن كانت موصوفة بالعدم فما هي معدومة لله الحق من حيث علمه بها كما إن تصور الإنسان المخترع للأشياء صورة ما يريد اختراعها في نفسه ثم يبرزها فيظهر عينها لها فاتصفت بالوجود العيني و كانت في حال عدمها موصوفة بالوجود في الوجود الذهني في حقنا و الوجود العلمي في حق اللّٰه فظهور الأشياء من وجود إلى وجود من وجود علم إلى وجود عين و المحال الذي هو العدم المحض ما فيه أعيان تمييز فهذا معنى بعض ما يتضمنه دعاء الاستخارة و أما قوله و يسره لي يريد الأسباب التي هي علامات و دلائل على تحصيل المطلوب

(فصول جوامع فيما يتعلق بالصلاة و بها خاتمة الباب)

(وصل في إقامة الصلاة)

إقامة الصلاة ظهور نشأتها على أتم خلقها و خلقها يختلف باختلاف من تنسب إليه فإذا نسبت الصلاة إلى اللّٰه فلها نشأة تخالف نشأة نسبتها إلى غير اللّٰه من ملك و بشر و غيرهما من المخلوقين فالحق ينشئها نشأة تامة و لهذا قال ﴿وَ رَحْمَتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ﴾ [الأعراف:156] لتمام خلقها إذا كانت الصلاة المنسوبة إليه في قوله ﴿هُوَ الَّذِي يُصَلِّي عَلَيْكُمْ﴾ [الأحزاب:43]



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