الفتوحات المكية

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﴿وَ يَوْمَ أُبْعَثُ حَيًّا﴾ [مريم:33] يعني في القيامة الكبرى أكد موته فأتاه الحكم بما ذكره و هو صبي رضيع في المهد فكان أتم في الوصلة بربه من يحيى بن خالته فإن عيسى سلم على نفسه بسلام ربه و لهذا ادعى فيه أنه إله و يحيى سلم عليه ربه تعالى و لم ينص على أنه عرف بذلك السلام عليه أو لم يعرف

[أن للناس غريب أن تأخذ الحكمة من الصبي الصغير]

و اعلم أن الناس إنما يستغربون الحكمة من الصبي الصغير دون الكبير لأنهم ما عهدوا إلا الحكمة الظاهرة عن التفكر و الرؤية و ليس الصبي في العادة بمحل لذلك فيقولون إنه ينطق بها فتظهر عناية اللّٰه بهذا المحل الظاهر فزاد يحيى و عيسى بأنهما على علم مما نطقا به علم ذوق لأن مثل هذا في هذا الزمان و السن لا يصح أن يكون إلا ذوقا و أن اللّٰه آتاه الحكم صبيا : و هو حكم النبوة التي لا تكون إلا ذوقا فمن كان هجيره هذا فوراثته و إن كان محمديا لهذين النبيين أو لأحدهما على حسب قوة نسبته منهما أو من أحدهما و قد نطق في المهد جماعة أعني في حال الرضاعة و قد رأينا أعظم من هذا رأينا من تكلم في بطن أمه و أدى واجبا و ذلك أن أمه عطست و هي حامل به فحمدت اللّٰه فقال لها من بطنها يرحمك اللّٰه بكلام سمعه الحاضرون و أما ما يناسب الكلام فإن ابنتي زينب سألتها كالملاعب لها و هي في سن الرضاعة و كان عمرها في ذلك الوقت سنة أو قريبا منها فقلت لها بحضور أمها وجدتها يا بنية ما تقولين في الرجل يجامع أهله و لا ينزل فقالت يجب عليه الغسل فتعجب الحاضرون من ذلك و فارقت هذه البنت في تلك السنة و تركتها عند أمها و غبت عنها و أذنت لأمها في الحج في تلك السنة و مشيت أنا على العراق إلى مكة فلما جئنا المعرف خرجت في جماعة معي أطلب أهلي في الركب الشامي فرأتني و هي ترضع ثدي أمها فقالت يا أمي هذا أبي قد جاء فنظرت الأم حتى رأتني مقبلا على بعد و هي تقول هذا أبي هذا أبي فناداني خالها فأقبلت فعند ما رأتني ضحكت و رمت بنفسها علي و صارت تقول لي يا أبت يا أبت فهذا و أمثاله من هذا الباب



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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