الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
 

الصفحة - من الجزء (عرض الصورة)


futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 245 - من الجزء 3

و أشهدها كل شيء كان في الدار الأولى غائبا و أسكن هذه النشأة الدار الأخرى المسماة جنة منها فإنه قسم الدار الأخرى إلى منزلين هذا هو المنزل الواحد و المنزل الآخر المسمى جهنم جعل نشأة بدن أنفسها الناطقة عنصرية تقبل التغيير و أصحبها الجهل و سلب عنها العلم فأعطى جهل المؤمنين من أهل التقليد من كان من أهل هذه الدار دار الشقاء عالما بدقائق الأمور فدخل بذلك الجهل النار إذ كان من أهلها و هي لا تقبل العلماء و أعطى هذا العالم الذي كان في الدنيا عالما بدقائق الأمور و لم يكن من أهل الجنة جهل المؤمن المقلد فإن الجنة ليست بدار جهل فيرى المؤمن الأبله المقلد ما كان عليه من الجهل على ذلك العالم فيستعيذ بالله من تلك الصفة و يرى قبحها و يشكر اللّٰه على نعمته التي أعطاه إياها بما كساه و خلع عليه من علم ذلك العالم الذي هو من أهل النار و ينظر إليه ذلك العالم فيزيد حسرة إلى حسرته و يعلم أن الدار أعطت هذه الحقائق لنفسها فيقول ﴿يٰا لَيْتَنٰا نُرَدُّ وَ لاٰ نُكَذِّبَ بِآيٰاتِ رَبِّنٰا وَ نَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ﴾ [الأنعام:27] لعلمهم إذ كانوا مؤمنين و إن كانوا جاهلين أنهم إذا انتقلوا إلى دار السعادة خلعت عنهم ثياب الجهالة و خلع عليهم خلع العلم فلا يبالون بما كانوا عليه من الجهل في الدنيا لحسن العاقبة و ما علموا أنهم لو ردوا إلى الدنيا في النشأة التي كانوا عليها لعادوا إلى حكمها فإن الفعل بالخاصية لا يتبدل فما تكلموا بما تكلموا به من هذا التمني إلا بلسان النشأة التي هم فيها و تخيلوا أن ذلك العلم يبقى عليهم و ما جعل اللّٰه في هذه النشأة الدنيا النسيان للعلماء بالشيء فيما قد علموه و يعلمون أنهم قد كانوا علموا أمرا فيطلبون استحضاره فلا يجدونه بعد ما كانوا عالمين به إلا أعلاما و تنبيها ﴿أَنَّهُ عَلىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾ [الحج:6] بأن يسلب عنهم العلم بما كانوا به عالمين إذا دخلوا النار ﴿يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَنْ يَشٰاءُ﴾ [البقرة:105] و هو قوله تعالى ﴿قُلِ اللّٰهُمَّ مٰالِكَ الْمُلْكِ تُؤْتِي الْمُلْكَ مَنْ تَشٰاءُ﴾ [آل عمران:26] و أي ملك أعظم من العلم و هو ما أعطاه من العلم للمؤمن المقلد الجاهل السعيد في الدار الآخرة ﴿وَ تَنْزِعُ الْمُلْكَ مِمَّنْ تَشٰاءُ﴾ [آل عمران:26] و أي ملك أفضل من العلم فينزعه من العالم غير المؤمن الذي هو من أهل النار ﴿وَ تُعِزُّ مَنْ تَشٰاءُ﴾ [آل عمران:26] بذلك العلم ﴿وَ تُذِلُّ مَنْ تَشٰاءُ﴾ [آل عمران:26] بانتزاع ذلك العلم منه

لما علمت بأن اللّٰه كلفني *** علمت أني مسئول و مقصود

و إنني لا أزال الدهر أعبده *** دنيا و آخرة و الحق معبود

و ما تجلى لشيء من خليقته *** إلا و يشهد أن الحق مشهود

من عين صورته لا من حقيقته *** فالأمر و الشأن موجود و مفقود

لأننا بعيون الوجه نبصره *** و كلنا وجهه و الوجه محدود

هو الوجود و من في الكون صورته *** فليس ثم سوى الرحمن موجود

الدار داران دار الدار يعمرها *** دار اللطيف فما في الكون تجريد

و لو لا أن الحقائق تعطي أن المال إلى الرحمة في الدار الأخرى فيرحمه معنى و حسا فثم من تكون الرحمة به عين العافية لا غير و ارتفاع الآلام و هذا مخصوص بأهل النار الذين هم أهلها فهم لا يموتون فيها لما حصل لهم فيها من العافية بزوال الآلام فاستعذبوا ذلك فهم أصحاب عذاب لا أصحاب ألم و لا يحيون أي ما لهم نعيم كنعيم أهل الجنان الذي هو أمر زائد على كونهم عافاهم من دار الشقاء

في القلب منك لهيب ليس يطفيه *** إلا الذي بشهود الحس ينشيه

إني أخاف على الأشراف من شرف *** فمن يمر على قلبي فينبيه

إذا أتى صاحب العاهات يطلبه *** فإنه بشهود الحال يبريه

و ما يعيد على قلبي تنعمه *** إلا الذي كان قبل اليوم يبديه

[أن العلم هو السعادة]

و اعلم أنه من زعم اليوم أن العلم هو السعادة فإنه صادق بأن العلم هو السعادة و به أقول و لكن فاته ما أدركه أهل الكشف و هو أنه إذا أراد اللّٰه شقاوة العبد أزال عنه العلم فإنه لم يكن العلم له ذاتيا بل اكتسبه و ما كان مكتسبا فجائز زواله و يكسوه حلة الجهل فإن عين انتزاع العلم جهل و لا يبقى عليه من العلم إلا العلم بأنه قد انتزع عنه العلم فلو لم يبق اللّٰه تعالى عليه هذا العلم


مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7178 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7179 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7180 من مخطوطة قونية
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7181 من مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لطبعة القاهرة (دار الكتب العربية الكبرى) - المعروفة بالطبعة الميمنية. وقد تم إضافة عناوين فرعية ضمن قوسين مربعين.

 

الصفحة - من الجزء (اقتباسات من هذه الصفحة)

[الباب: ] - (مقاطع فيديو مسجلة لقراءة هذا الباب)

البحث في كتاب الفتوحات المكية

الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!