الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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في كون ذلك العلم و النظر قربة إلى اللّٰه صاحب نور إيمان فإن نور العلم بتوحيد اللّٰه قد شهدوا اللّٰه بتوحيده قبل ذلك و الرسل منهم قد وحدوه قبل أن يكونوا أنبياء و رسلا فإن الرسول ما أشرك قط قال تعالى ﴿شَهِدَ اللّٰهُ أَنَّهُ لاٰ إِلٰهَ إِلاّٰ هُوَ وَ الْمَلاٰئِكَةُ وَ أُولُوا الْعِلْمِ﴾ [آل عمران:18] و لم يقل و أولو الايمان فرتبة العلم فوق رتبة الايمان بلا شك و هي صفة الملائكة و الرسل و قد يكون حصول ذلك العلم عن نظر أو ضرورة كيفما كان فيسمى علما إذ لا قائل و لا مخبر يلزم التصديق بقوله و هذا المقام الذي أثبتناه بين الصديقية و نبوة التشريع الذي هو مقام القربة و هو للافراد هو دون نبوة التشريع في المنزلة عند اللّٰه و فوق الصديقية في المنزلة عند اللّٰه و هو المشار إليه بالسر الذي وقر في صدر أبي بكر ففضل به الصديقين إذ حصل له ما ليس من شرط الصديقية و لا من لوازمها فليس بين أبي بكر و رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم رجل لأنه صاحب صديقية و صاحب سر فهو من كونه صاحب سر بين الصديقية و نبوة التشريع و يشارك فيه فلا يفضل عليه من يشاركه فيه بل هو مساو له في حقيقته فافهم ذلك

[الأولياء الشهداء]

و من الأولياء أيضا الشهداء رضي اللّٰه عن جميعهم تولاهم اللّٰه بالشهادة و هم من المقربين و هم أهل الحضور مع اللّٰه على بساط العلم به قال تعالى ﴿شَهِدَ اللّٰهُ أَنَّهُ لاٰ إِلٰهَ إِلاّٰ هُوَ وَ الْمَلاٰئِكَةُ وَ أُولُوا الْعِلْمِ﴾ [آل عمران:18] فجمعهم مع الملائكة في بساط الشهادة فهم موحدون عن حضور إلهي و عناية أزلية فهم الموحدون و شأنهم عجيب و أمرهم غريب و الايمان فرع عن هذه الشهادة فإن بعث رسول و آمنوا به أعني هؤلاء الشهداء فهم المؤمنون العلماء و لهم الأجر التام يوم القيامة و إن لم يؤمنوا فليس هم الشهداء الذين أنعم اللّٰه عليهم في قوله ﴿فَأُولٰئِكَ(مَعَ)الَّذِينَ أَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَيْهِمْ مِنَ النَّبِيِّينَ وَ الصِّدِّيقِينَ وَ الشُّهَدٰاءِ وَ الصّٰالِحِينَ وَ حَسُنَ أُولٰئِكَ رَفِيقاً﴾ و لو لا قوله ﴿وَ حَسُنَ أُولٰئِكَ رَفِيقاً﴾ [النساء:69] ألحقنا هؤلاء الشهداء بحصول النعمة التي لأصحاب هذه الآية فإنهم و إن كانوا موحدين غير مؤمنين مع وجود الرسول إليهم لم تحسن مرافقتهم للمؤمنين فإنهم يشوشون على المؤمنين إيمانهم و هؤلاء الشهداء الذين تعمهم هذه الآية هم العلماء بالله المؤمنون بعد العلم بما قال سبحانه إذ ذلك قربة إليه من حيث قاله اللّٰه أو قاله الرسول الذي جاء من عند اللّٰه فقدم الصديق على الشهيد و جعله بإزاء النبي فإنه لا واسطة بينهما لاتصال نور الايمان بنور الرسالة و الشهداء لهم نور العلم مساوق لنور الرسول من حيث ما هو شاهد لله بتوحيده لا من حيث هو رسول فلا يصح أن يكون بعده مع المساوقة فكانت المساوقة تبطل و لا يصح أن يكون معه لكونه رسولا و الشاهد ليس برسول فلا بد أن يتأخر فلم يبق إلا أن يكون في الرتبة التي تلي الصديقية

[الشهيد و الصديق]

فإن الصديق أتم نورا من الشهيد في الصديقية لأنه صديق من وجهين من وجه التوحيد و من وجه القربة و الشهيد من وجه القربة خاصة لا من وجه التوحيد فإن توحيده عن علم لا عن إيمان فنزل عن الصديق في مرتبة الايمان و هو فوق الصديق في مرتبة العلم فهو المتقدم في رتبة العلم المتأخر برتبة الايمان و التصديق فإنه لا يصح من العالم أن يكون صديقا و قد تقدم العلم مرتبة الخبر فهو يعلم أنه صادق في توحيد اللّٰه إذا بلغ رسالة اللّٰه و الصديق لم يعلم ذلك إلا بنور الايمان المعد في قلبه فعند ما جاءه الرسول اتبعه من غير دليل ظاهر فقد عرفت منازل الشهداء عند اللّٰه

[الأولياء الصالحون]

و من الأولياء رضي اللّٰه عنهم الصالحون تولاهم اللّٰه بالصلاح و جعل رتبتهم بعد الشهداء في المرتبة الرابعة لكن الشكل دائرة كما رسمناه في الهامش فالنبوة ابتدأ بها حتى انتهى إلى الصلاح و نهاية الشكل المستدير إذا كان مجعولا ترتبط بالبداية حتى تصح الدائرة و ما من نبي إلا و قد ذكر أنه صالح أو أنه دعا أن يكون من الصالحين مع كونه نبيا فدل على أن رتبة الصلاح خصوص في النبوة فقد تحصل لمن ليس بنبي و لا صديق و لا شهيد فصلاح الأنبياء هو مما يلي بدايتهم و هو عطف الصلاح عليهم فهم صالحون للنبوة فكانوا أنبياء و أعطاهم الدلالة فكانوا شهداء و أخبرهم بالغيب فكانوا صديقين فالأنبياء صلحت لجميع هذه المقامات فكانوا صالحين فجمعت الرسل جميع المقامات كما صلح الصديقون للصديقية و صلح الشهداء للشهادة و كل موجود فهو صالح لما وجد له غير أن هؤلاء الصالحين الذين أثنى اللّٰه عليهم بأنه أنعم عليهم هم المطلوبون في هذا المقام و هم المنخرطون في سلك هذا النمط فهم رابعو أربعة و أراد بالنبيين هنا الرسل أهل الشرع سواء بعثوا أو لم يبعثوا أعني بطريق الوجوب عليهم فالصالحون هم الذين لا يدخل علمهم بالله و لا إيمانهم بالله و بما جاء من عند اللّٰه خلل فإن دخله خلل بطل كونه


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