الفتوحات المكية

الفتوحات المكية - طبعة بولاق الثالثة (القاهرة / الميمنية)

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عين الأخ الثاني فكما يفرق البصر بينهما و العلم كذلك يفرق العلم بينهما في الحروف عند أهل الكشف من جهة الكشف و عند النازلين عن هذه الدرجة من جهة المقام التي هي بدل عن حروفه و يزيد صاحب الكشف على العالم من جهة المقام بأمر آخر لا يعرفه صاحب علم المقام المذكور و هو مثلا قلت إذا كررته بدلا من اسم بعينه فتقول لشخص بعينه قلت كذا و قلت كذا فالتاء عند صاحب الكشف التي في قلت الأول غير التاء التي في قلت الثاني لأن عين المخاطب تتجدد في كل نفس بل هم في لبس من خلق جديد فهذا شأن الحق في العالم مع أحدية الجوهر و كذلك الحركة الروحانية التي عنها أوجد الحق تعالى التاء الأولى غير الحركة التي أوجد عنها التاء الأخرى بالغا ما بلغت فيختلف معناها بالضرورة فصاحب علم المقام يتفطن لاختلاف علم المعنى و لا يتفطن لاختلاف التاء أو أي حرف ضميرا كان أو غير ضمير فإنه صاحب رقم و لفظ لا غير كما تقول الأشاعرة في الأعراض سواء فالناس مجمعون معهم على ذلك في الحركة خاصة و لا يصلون إلى علم ذلك في غير الحركة فلهذا أنكروه و لم يقولوا به و نسبوا القائل بذلك إلى الهوس و إنكار الحس و حجبوا عن إدراك ضعف عقولهم و فساد محل نظرهم و قصورهم عن التصرف في المعاني فلو حصل لهم الأول عن كشف حقيقي من معدنه لانسحبت تلك الحقيقة على جميع الأعراض حكما عاما لا يختص بعرض دون عرض و إن اختلفت أجناس الأعراض فلا بد من حقيقة جامعة و حقيقة فاصلة و هكذا هذه المسألة التي ذكرناها في حق من قال بما قلناه فيها و من أنكره

[مطلوب المحققين في الصور المحسة]

فليس المطلوب عند المحققين الصور المحسوسة لفظا و رقما و إنما المطلوب المعاني التي تضمنها هذا الرقم أو هذا اللفظ و حقيقة اللفظة و المرقوم عينها فإن الناظر في الصور إنما هو روحاني فلا يقدر أن يخرج عن جنسه فلا تحجب بأن ترى الميت لا يطلب الخبز لعدم السر الروحاني منه و يطلبه الحي لوجود الروح فيه فتقول نراه يطلب غير جنسه فاعلم إن في الخبز و الماء و جميع المطاعم و المشارب و الملابس و المجالس أرواحا لطيفة غريبة هي سر حياته و علمه و تسبيحه ربه و علو منزلته في حضرة مشاهدة خالقه و تلك الأرواح أمانة عند هذه الصور المحسوسة يؤدونها إلى هذا الروح المودع في الشبح أ لا ترى إلى بعضهم كيف يوصل أمانته إليه الذي هو سر الحياة فإذا أدى إليه أمانته خرج إما من الطريق الذي دخل منه فيسمى قيئا و قلسا و إما من طريق آخر فيسمى عذرة و بولا فما أعطاه الاسم الأول إلا السر الذي أداه إلى الروح و بقي باسم آخر يطلبه من أجله صاحب الخضراوات و المدبرين أسباب الاستحالات هكذا يتقلب في أطوار الوجود فيعرى و يكتسي و يدور بدور الأكرة كالدولاب إلى أن يشاء اللّٰه العليم الحكيم فالروح معذور في تعشقه بهذه المحسوسات فإنه عاين مطلوبه فيها فهي في منزل محبوبه

أمر على الديار ديار سلمي *** أقبل ذا الجدار و ذا الجدارا

و ما حب الديار مضى بقلبي *** و لكن حب من سكن الديارا

و قال أبو إسحاق الزوالي رحمه اللّٰه

يا دار إن غزالا فيك تيمني *** لله درك ما تحويه يا دار

لو كنت أشكو إليها حب ساكنها *** إذن رأيت بناء الدار ينهار

فافهموا فهمنا اللّٰه و إياكم سرائر كلمه و أطلعنا و إياكم على خفيات غيوب حكمه

[معاني عالم الحروف]

أما قولنا الذي ذكرناه بعد كل حرف فأريد إن أبينه لكم حتى تعرفوا منه ما لا ينفركم عما لا تعلمون فأقل درجات الطريق التسليم فيما لا تعلمه و أعلاه القطع بصدقه و ما عدا هذين المقامين فحرمان كما إن المتصف بهذين المقامين سعيد قال أبو يزيد البسطامي لأبي موسى يا أبا موسى إذا لقيت مؤمنا بكلام أهل هذه الطريقة قل له يدعو لك فإنه مجاب الدعوة و قال رويم من قعد مع الصوفية و خالفهم في شيء مما يتحققون به نزع اللّٰه نور الايمان من قلبه«شرح»فمن ذلك قولنا حرف كذا باسمه كما سقته هو من عالم الغيب فاعلم إن العالم على بعض تقاسيمه على قسمين بالنظر إلى حقيقة ما معلومة عندنا«قسم يسمى عالم الغيب»و هو كل ما غاب عن الحس و لم تجر العادة بأن يدرك الحس له و هو من الحروف السين و الصاد و الكاف و الخاء المعجمة و التاء باثنتين من فوق و الفاء و الشين و الهاء و الثاء بالثلاث و الحاء و هذه حروف الرحمة و الألطاف


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