الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4437 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿فَلَمْ يَكُ يَنْفَعُهُمْ إِيمٰانُهُمْ لَمّٰا رَأَوْا بَأْسَنٰا﴾ [غافر:85] فكلام محقق في غاية الوضوح فإن النافع هو اللّٰه فما نفعهم إلا اللّٰه و قوله ﴿سُنَّتَ اللّٰهِ الَّتِي قَدْ خَلَتْ فِي عِبٰادِهِ﴾ [غافر:85] يعني الايمان عند رؤية البأس الغير المعتاد و قد قال ﴿وَ لِلّٰهِ يَسْجُدُ مَنْ فِي السَّمٰاوٰاتِ وَ الْأَرْضِ طَوْعاً وَ كَرْهاً﴾ [الرعد:15] فغاية هذا الايمان أن يكون كرها و قد أضافه الحق إليه سبحانه و الكراهة محلها القلب و الايمان محله القلب و اللّٰه لا يأخذ العبد بالأعمال الشاقة عليه من حيث ما يجده من المشقة فيها بل يضاعف له فيها الأجر و أما في هذا الموطن فالمشقة منه بعيدة بل جاء طوعا في إيمانه و ما عاش بعد ذلك كما قال في راكب البحر عند ارتجاجه ﴿ضَلَّ مَنْ تَدْعُونَ إِلاّٰ إِيّٰاهُ﴾ [الإسراء:67] فنجاهم فلو قبضهم عند نجاتهم لماتوا موحدين و قد حصلت لهم النجاة فقبض فرعون و لم يؤخر في أجله في حال إيمانه لئلا يرجع إلى ما كان عليه من الدعوى ثم قوله تعالى في تتميم قصته هذه ﴿وَ إِنَّ كَثِيراً مِنَ النّٰاسِ عَنْ آيٰاتِنٰا لَغٰافِلُونَ﴾ [يونس:92] و قد أظهرت نجاتك آية أي علامة على حصول النجاة فغفل أكثر الناس عن هذه الآية و قضوا على المؤمن بالشقاء و أما قوله ﴿فَأَوْرَدَهُمُ النّٰارَ﴾ [هود:98] فما فيه نص أنه يدخلها معهم بل قال اللّٰه ﴿أَدْخِلُوا آلَ فِرْعَوْنَ﴾ [غافر:46] و لم يقل أدخلوا فرعون و آله و رحمة اللّٰه أوسع من حيث أن لا يقبل إيمان المضطر و أي اضطرار أعظم من اضطرار فرعون في حال الغرق و اللّٰه يقول



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!