The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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﴿وَ أَنَّ إِلىٰ رَبِّكَ الْمُنْتَهىٰ﴾ [ النجم:42] و ليس وراء اللّٰه مرمى فجعله موضع غايته و سلك سلوك المفكر الباحث صاحب النظر العقلي لكن بالطريق الشرعي فصفت نفسه و صقلت مرآته و انتقش فيها صور العالم كله الروحاني و إلى حد الطبيعة التي دون النفس يصل أهل الفكر و ما ينتقش فيهم مما فوقها إلا من يكون سلوكه على الطريق المشروع فإذا وصل هذا السالك على طريق الشرع انتقش فيه ما في اللوح المحفوظ فيرى مرتبة الشرائع و يرى نفسه و حظه و نصيبه و غايته من العالم فيعمل بحسب ما يراه فيرتفع بالطلب إلى الوجه الخاص به فيأخذ عن الحق أخذ إلهام و أخذ تجل و أخذ تنزيه و أخذ تشبيه و يعاين سريان الوجود في الممكنات و يعلم عند ذلك لمن الحكم فيما ظهر و من هو الظاهر الذي تظهر فيه هذه الأحكام و الاختلافات الروحانية و الطبيعية فإذا نطق هذان الشخصان علم الكامل من الرجال الفرق بين الشخصين و علم من أين أتى على كل واحد منهما و لما ذا نقص السالك بفكره عن رتبة المتشرع فصاحب الفكر لا يزال أبدا منكوس الرأس منتظرا ما يأتيه به الإمداد الروحاني و صاحب الشرع لا يزال منكوس الرأس حياء من التجلي الإلهي في أوقات كما لا يزال شبه الحائر الواله المبهوت إذا رآه في كل شيء فلا ينطق إلا به و لا ينظر إلا إليه و لا يعلم أن ثم عينا سواه فيطلبه الملأ الأعلى و الأرواح العلى و الأفلاك الدائرة المتحركة و الكواكب السابحة لتوصل إليه ما أمنت عليه مما يستحقه عليها فلا تجد من يأخذ عنها بطريق الاعتبار و الأدب فتؤدي ذلك أداء ذاتيا و يأخذه منها ما بقي من نشأته أخذا ذاتيا و هو غائب بربه عن هذا كله فإذا رد إلى رؤية ذاته رأى في ذاته جميع ما أعطاه العالم كله أعلاه و أسفله مما هو له و هو أمانة عندهم فشكر اللّٰه على ذلك و علم إن كل ما في الكون مسخر له و لأمثاله و لكن لا يعلمون فإذا حصل في هذا المقام رأى أن الذين أوتوا العلم على درجات يزيدون بها على غيرهم من أمثالهم و يرى أن أمثاله بمثابته و لا علم لهم بذلك فيفرح بذاته و يحزن لهم حيث هم في مقام واحد معه و لا يشعرون بذلك و إنه ما فضل عليهم إلا بالعلم به و بهم و بما هو الأمر عليه و لما ارتقى هذه الدرجات ارتقاء كشف و تحقيق و معاينة يقينية طلب من أين له هذه الدرجات التي ارتقى فيها و اختص دون أكثر أمثاله بها فتجلى له الحق عند ذلك في اسمه



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