The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 437 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[الكتاب من باب الإشارة]

فهي فاتحة الكتاب لأن الكتاب عبارة من باب الإشارة عن المبدع الأول فالكتاب يتضمن الفاتحة و غيرها لأنها منه و إنما صح لها اسم الفاتحة من حيث إنها أول ما افتتح بها كتاب الوجود و هي عبارة عن المثل المنزه في ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] بأن تكون الكاف عين الصفة فلما أوجد المثل الذي هو الفاتحة أوجد بعده الكتاب و جعله مفتاحا له فتأمل و هي أم القرآن لأن الأم محل الإيجاد و الموجود فيها هو القرآن و الموجد الفاعل في الأم فالأم هي الجامعة الكلية و هي أم الكتاب الذي عنده في قوله تعالى ﴿وَ عِنْدَهُ أُمُّ الْكِتٰابِ﴾ [الرعد:39] فانظر عيسى و مريم عليهما السلام و فاعل الإيجاد يخرج لك عكس ما بدا لحسك فالأم عيسى و الابن الذي هو الكتاب العندي أو القرآن مريم عليهما السلام فافهم و كذلك الروح ازدوج مع النفس بواسطة العقل فصارت النفس محل الإيجاد حسا و الروح ما أتاها إلا من النفس فالنفس الأب فهذه النفس هو الكتاب المرقوم لنفوذ الخط فظهر في الابن ما خط القلم في الأم و هو القرآن الخارج على عالم الشهادة و الأم أيضا عبارة عن وجود المثل محل الأسرار فهو الرق المنشور الذي أودع فيه الكتاب المسطور المودعة فيه تلك الأسرار الإلهية فالكتاب هنا أعلى من الفاتحة إذ الفاتحة دليل الكتاب و مدلولها و شرف الدليل بحسب ما يدل عليه أ رأيت لو كان مفتاحا لضد الكتاب المعلوم أن لو فرض له ضد حقر الدليل لحقارة المدلول و لهذا «أشار النبي صلى اللّٰه عليه و سلم أن لا يسافر بالمصحف إلى أرض العدو» لدلالة تلك الحروف على كلام اللّٰه تعالى إذ قد سماها الحق كلام اللّٰه و الحروف الذي فيه أمثالها و أمثال الكلمات إذا لم يقصد بها الدلالة على كلام اللّٰه يسافر بها إلى أرض العدو و يدخل بها مواضع النجاسات و أشباهها و الكشف

[حضرتا الجمع و الأفراد في الفاتحة]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Please note that some contents are translated from Arabic Semi-Automatically!