الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«قد ورد في الخبر أن شخصين محبوب لله و بغيض سألا اللّٰه في حاجة فأوحى اللّٰه للملك أن يقضي حاجة البغيض مسرعا حتى يشتغل عن سؤاله لكونه يبغضه و يبغض صوته و يقول للملك توقف عن حاجة فلان فإني أحب أن أسمع صوته و سؤاله فإني أحبه» فهذا مقضي الحاجة على بغض و هذا غير مقضي الحاجة مع حب و عناية فلو كشف لهذا المحبوب هذا السر في وقت تأخر الإجابة ما وسعه شيء من الفرح بذلك فالتوقف عن الإجابة كتوقف الداهش لصدق قوله في أنه لا مكره له و الالتذاذ علمه بأنه لا بد من وصوله إلى ما طلب و فرحه به فسبحان العزيز الحكيم

(منصة و مجلى)نعت
المحب بأنه جاوز الحدود بعد حفظها

هذا معين في أحباء أهل بدر فإنهم ممن جاوزوا الحدود بعد حفظها فقال لهم افعلوا ما شئتم فقد غفرت لكم و أما في غير المعينين في العموم و هم معينون في الخصوص و قد عين الحق صفتهم فهو ما ذكر اللّٰه سبحانه في «قوله أذنب عبد ذنبا فعلم إن له ربا يغفر الذنب و يأخذ بالذنب فقال في الرابعة أو في الثالثة اعمل ما شئت فقد غفرت لك» فأباح له و أخرجه من التحجير في الدنيا إذ كان اللّٰه لا يأمر بالفحشاء فما عصى اللّٰه صاحب هذه الصفة بل تصرف فيما أباحه اللّٰه له و قد كان قبل هذه الصفة من أهل الحدود فجاوزها بعد حفظها فهذا أعطاه شرف العلم مع وجود عقل التكليف بخلاف صاحب الحال فإن حكم صاحب الحال حكم المجنون الذي ارتفع عنه القلم فلا يكتب لا له و لا عليه و هذا يكتب له و لا عليه فهذا قدر ما بين العلم و الحال فما أشرف العلم فالمحب إذا كان صاحب علم هو أتم من كونه صاحب حال فالحال في هذه الدار الدنيا نقص و في الآخرة تمام و العلم هنا تمام و في الآخرة تمام و أتم المحب اللّٰه لما علم من عباده المحبين له أنهم غير مطالبين لله ما أوجبه لهم على نفسه جاوزوا الحدود بعد حفظها فأعطاهم ما أوجبه على نفسه و هو حفظها ثم أعطاهم بغير حساب و هو مجاوزته الحدود فإن الحد الحسنة بعشر أمثالها إلى سبعمائة ضعف و مجاوزة الحدود الزيادة في قوله ﴿لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا الْحُسْنىٰ﴾ [يونس:26] و هو حفظ الحد



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