The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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(وفق مخطوطة قونية)

و أما العلم الذي ترثه من الأنبياء عليه السّلام من علم الأكوان فعلم الآخرة و مال العالم لأن ذلك كله من قبيل الإمكان فالأنبياء تعين عن اللّٰه إن بعض الممكنات على التعيين هو الواقع فيعلمه العالم فذلك ورث نبوي لم يكن يعلمه قبل إخبار هذا النبي به و ما عدا هذا فما هو علم موروث إلا في حق العامي الذي ما وفى عقله حقه فتلقى من النبي علما بما لو نظر فيه بعقله أدركه كتوحيد اللّٰه و وجوده و بعض ما يتعلق به من حكم الأوصاف و الأسماء فيكون ذلك في حق من لم يعلمه إلا من طريق النبي علم موروث و إنما قلنا فيه إنه علم لأن الأنبياء لا تخبر إلا بما هو الأمر عليه في نفسه فإنهم معصومون في أخبارهم عن اللّٰه أن يقولوا ما ليس هو الأمر عليه في نفسه بخلاف غير الأنبياء من المخبرين من عالم و غير عالم فإن العالم قد يتخير فيما ليس بدليل أنه دليل فيخبر بما أعطاه ذلك الدليل ثم يرجع عنه بعد ذلك فلهذا لا ينزل في درجة العلم منزلة النبي ﷺ و قد يخبر بالعلم على ما هو عليه في نفس الأمر و لكن لا يتعين على الحقيقة لما ذكرناه من دخول الاحتمال فيه و كذلك غير العالم من العوام فقد يصادفون العلم و قد لا يصادفونه في أخبارهم و النبي ﷺ ليس كذلك فإذا أخبر عن أمر من جهة اللّٰه فهو كما أخبر فالمحصل له عالم بلا شك كما إن ذلك الخبر علم بلا شك فلذلك قيد ﷺ إن العلماء هم ورثة الأنبياء لأنهم إذا قبلوا ما قاله الرسول فقد علموا الأمر على ما هو عليه و من وراثته ﷺ حب النساء و الطيب و جعلت قرة عينه في الصلاة و لكن إذا كان ذلك في الإنسان محببا إليه حينئذ يكون وارثا و أما إن أحب ذلك من غير تحبب فليس بوارث فإن العبد لما كان مخلوقا لله لا لغيره كما قال تعالى ﴿وَ مٰا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَ الْإِنْسَ إِلاّٰ لِيَعْبُدُونِ﴾ [الذاريات:56] فما خلقهم إلا لعبادته و «قال لموسى في الاثنتي عشرة كلمة يا ابن آدم خلقتك من أجلي»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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