The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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و اعلم أنه لما لم يتمكن أن يتقدم الاسم الحي الإلهي اسم من الأسماء الإلهية كانت له رتبة السبق فهو المنعوت على الحقيقة بالأول فكل حي في العالم و ما في العالم إلا حي فهو فرع عن هذا الأصل و كما لا يشبه الفرع الأصل بما يحمله من الثمر و ما يظهر منه من تصريف الأهواء له على اختلافها عليه و ما يقبل من حال التعرية و اللباس إذا أورق و تجرد عن ورقه و الأصل ليس كذلك بل هو الممد له بكل ما يظهر فيه و به إذ ليس له بقاء في فرعيته و أحكامها إلا بالأصل كذلك الاسم الحي مع سائر الأسماء الإلهية فكل اسم هو له إذا حققت الأمر فيسري سره في جميع العالم فخرج على صورته فيما نسب إليه من التسبيح بحمده و التسبيح تنزيه و التنزيه تعرية و كذلك الأصل معرى عن ملابس الفروع و زينتها من ورق و ثمر و كل ذلك منه و هو منزه في ذاته عن أن تقوم به فقد أعطى ما لا يقوم به و لا يكون صفة له و هذا علم لا يمكن أن يحصل إلا لصاحب كشف و إذا حصل له لا يمكن أن يقسم العالم إلى حي و إلى غير حي بل هو عنده كله حي و لكن تنسب عندنا الحياة لكل حي بحسب حقيقة المنعوت بها المسمى عند أهل الكشف و الشهود لا عند من لا يرى الحياة إلا في غير الجماد و النامي في نظره ليس كلامنا إلا مع أهل الكشف الذين أشهدهم اللّٰه الأمر على ما هو عليه في نفسه فاعلم ذلك و اعلم أنه لما كان الاسم الحي اسما ذاتيا للحق سبحانه لم يتمكن أن يصدر عنه إلا حي فالعالم كله حي إذ عدم الحياة أو وجود موجود من العالم غير حي لم يكن له مستند إلهي في وجوده البتة و لا بد لكل حادث من مستند فالجماد في نظرك هو حي في نفس الأمر و أما الموت فهو مفارقة حي مدبر لحي مدبر فالمدبر و المدبر حي و المفارقة نسبة عدمية لا وجودية إنما هو عزل عن ولاية ثم إنه ما من شرط الحي أن يحس فإن الإحساس و الحواس أمر معقول زائد على كونه حيا و إنما من شرطه العلم و قد يحس و قد لا يحس و لو أحس فليس من شرط الإحساس وجود الآلام و اللذات فإن العلم يغني عن ذلك مع كون العالم لا يحس بما جرت العادة أنه لا يدرك إلا بالحس و أنت تعلم و جميع العقلاء أن اللّٰه عالم بكل شيء مع تنزيهه عن الإحساس و الحواس فلحصول العلم طرق كثيرة عند من يستفيد علما و الحس طريق موصلة إلى العلم بالمحسوس فقد يوصل إلى العلم به من غير طريق الحس فيكون معلوما في الحالتين لكنه لا يكون محسوسا لمن علمه من غير طريق الحس لكنه هو له مشهود و معلوم كما لا نشك أنا نرى ربنا بالأبصار عيانا على ما يليق بجلاله و هو مرئي لنا و لا نقول فيه إنه محسوس لما يطلبه الحس من الحصر و التقييد فهذه رؤية غير مكيفة و كلامنا في هذا مع من يقول بالرؤية بالبصر و لا نقول بالكيف و لا الحصر و التقييد بل نراه منزها كما علمناه منزها و قد قدمنا في غير موضع من هذا الكتاب تصويب كل اعتقاد و صحة كل مقالة عقلية في اللّٰه و أما المقالات الشرعية المنزلة من اللّٰه فيه فالإيمان بها واجب و ما جاءت لتخالف العقل فإنها قد جاءت بموافقة العقل في



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