The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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﴿لَهُ الْحَمْدُ فِي الْأُولىٰ وَ الْآخِرَةِ وَ لَهُ الْحُكْمُ وَ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ﴾ [القصص:70] أي إلى الحكم و هو القضاء فالضمير في إليه يعود على الحكم فإنه أقرب مذكور فلا يعود على الأبعد و يتعدى الأقرب إلا بقرينة حال هذا هو المعلوم من اللسان الذي أنزل به القرآن فالقضاء يحكم على القدر و القدر لا حكم له في القضاء بل حكمه في المقدر لا غير بحكم القضاء فالقاضي حاكم و المقدر موقت فالقدر التوقيت في الأشياء من اسمه المقيت قال اللّٰه تعالى ﴿وَ كٰانَ اللّٰهُ عَلىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُقِيتاً﴾ [النساء:85] و هذا المنزل أشهدته بقونية في ليلة لم يمر على أشد منها لنفوذ الحكم و قوته و سلطانه فحمدت اللّٰه على قصوره على تلك الليلة و لم يكن حكم تأبيد و إنما كان حكم وقوع مقدر فلما رددت إلي و قد سقط في يدي و علمت ما أنزل اللّٰه علي و ما قدره الحق لدي و فرقت بين قضائه و قدره في الأشياء كتبت به إلى أخ في اللّٰه كان لي رحمه اللّٰه أعرفه بما جرى كما جرت العادة بين الإخوان إذ كان كتابه قد ورد علي يطلبني بشرح أحوالي فصادف ورود هذا الحال فكتبت إليه في الحال‌بسم اللّٰه الرحمن الرحيم ورد كتاب المولى يسأل وليه عن شرح ما رأى إنه به أولى ليكون في ذلك بحكم ما يرد عليه

شهاب الدين يا مولى الموالي *** سألت تهمما عن شرح حالي

أنا المطرود من بين الموالي *** و مثلي من يصد عن الوصال

عصيت زجاجة فجهلت قدري *** فها أنا طائع حد الغوالي

رميت بأسهم الهجران حتى *** تداخلت النبال على النبال

فيرميني بأسهمه فأتى *** إليه فعل ذكران الرجال

وقفت ببابه أشكو و أبكي *** بكاء فقيد واحدة الموالي

و قلت بعبرة و حنين شجو *** أنا المطرود من بين الموالي

أنا العبد المضيع حق ربي *** فكيف تضيعني يا ذا الجلال



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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