The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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فشبهه بشكل مستدير و هو الحلقة و الأرض و كذلك شبه السموات في الكرسي كحلقة و الأركان الكرية في جوف الفلك الأدنى كذلك ثم ما تولد عنها لا يكون أبدا في صورته إلا مستديرا أو مائلا إلى الاستدارة معدنا كان أو نباتا أو حيوانا و ذلك لأن الحركة دورية فلا تعطي إلا ما يشاكلها فالعرش أعظم الأجسام من حيث الإحاطة فهو العرش العظيم جرما و قدرا و بحركته أعطى ما في قوته لمن هو تحت إحاطته و قبضته فهو العرش الكريم لذلك و بنزاهته أن يحيط به غيره من الأجسام كان له الشرف فهو العرش المجيد ثم إنه ما استوى عليه الاسم الرحمن إلا من أجل النفس الرحماني و ذلك أن المحاط به في ضيق من علمه بأنه محاط به من حيث صورته فأعطاه النفس الرحماني روحا من أمره فكان مجموع كل موجود في العالم صورته و روحه المدبر له و جعل روحه لا داخلا في الصورة و لا خارجا عنها لأنه غير متحيز فانتفى المشروط و الشرط فإن النفس الذي صدرت عنه الأرواح لا داخل في العالم و لا خارج عنه فإذا نظر الموجود في كونه محاطا به ضاق صدره من حيث صورته و إذا نظر في نفسه من حيث روحانيته نفس اللّٰه عنه ذلك الضيق بروحه لما علم أنه لا توصف ذاته بأنه محاط به إحاطة العرش بالصور فزال عنه و أورثه ذلك الابتهاج و السرور و الفرح بذاته من حيث روحه فلهذا كان الاستواء بالاسم الرحمن و إحاطة هذا العرش من الإحاطة الإلهية بالعلم في قوله أحاط بكل شيء علما فهو من ورائهم محيط و ليس وراء اللّٰه مرمى لرام و وراء العالم اللّٰه فهو المنتهى و ما له انتهاء لا إله إلا هو العزيز الحكيم فالكلمة في العرش من النفس الرحماني واحدة و هو الأمر الإلهي لإيجاد الكائنات فالنفس سار إلى منتهى الخلأ فبه حيي كل شيء فإن العرش على الماء فقبل الحياة بذاته فخلق اللّٰه تعالى منه ﴿كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ أَ فَلاٰ يُؤْمِنُونَ﴾ [الأنبياء:30] بما يرونه من حياة الأرض بالمطر و حياة الأشجار بالسقي حتى الهواء إن لم يكن فيه مائية و إلا أحرق



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