The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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و الفرق بين النبي و الرسول أن النبي إذا ألقى إليه الروح ما ذكرناه اقتصر بذلك الحكم على نفسه خاصة و يحرم عليه أن يتبع غيره فهذا هو النبي فإذا قيل له بلغ ما أنزل إليك إما لطائفة مخصوصة كسائر الأنبياء و إما عامة للناس و لم يكن ذلك إلا لمحمد ﷺ لم يكن لغيره قبله فسمى بهذا الوجه رسولا و الذي جاء به رسالة و ما اختص به من الحكم في نفسه و حرم على غيره من ذلك الحكم هو نبي مع كونه رسولا و إن لم يخص في نفسه بحكم لا يكون لمن بعث إليهم فهو رسول لا نبي و أعني نبوة الشرائع التي ليست للأولياء فكل رسول لم يخص بشيء من الحكم في حق نفسه فهو رسول لا نبي و إن خص مع التبليغ فهو رسول و نبي فما كل رسول نبي على ما قلناه و لا كل نبى رسول بلا خلاف

[الورثة هم الأتباع الذين أمروا بالتبليغ عن الرسول]

ثم إن الورثة و هم الأتباع الذين أمروا بالتبليغ كمعاذ و علي و دحية رسل رسول اللّٰه ﷺ و لا يزال كل متأخر مأمورا بالتبليغ ممن أمر بالتبليغ متصل الطريق مأمورا عن مأمور إلى رسول اللّٰه ﷺ يسمى رسولا و لكن ما هي الرسالة التي انقطعت و الرسالة التي انقطعت هي تنزل الحكم الإلهي على قلب البشر بوساطة الروح كما قررناه فذلك الباب هو الذي سد و الرسالة و النبوة التي انقطعت و أما الإلقاء بغير التشريع فليس بمحجور و لا التعريفات الإلهية بصحة الحكم المقرر أو فساده فلم تنقطع و كذلك تنزل القرآن على قلوب الأولياء ما انقطع مع كونه محفوظا لهم و لكن لهم ذوق الإنزال و هذا لبعضهم(و لهذا)ذكر عن أبي يزيد أنه ما مات حتى استظهر القرآن أي أخذه عن إنزال و هو الذي نبه النبي ﷺ فيمن حفظ القرآن يعني على هذا الوجه أن النبوة قد أدرجت بين جنبيه و لم يقل في صدره و هذا معنى استظهار القرآن أي أخذه عن ظهر فله مثل هذا التنزل مستمر فيمن شاء اللّٰه من عباده لكن على هذا النعت و الصفة و هو قوله تعالى ﴿يُلْقِي الرُّوحَ مِنْ أَمْرِهِ عَلىٰ مَنْ يَشٰاءُ مِنْ عِبٰادِهِ﴾ [غافر:15]

[الرسل مبشرون و منذرون و الورثة منذرون لا مبشرون]



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