The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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فالعالم على الحقيقة هو اللّٰه الذي علم ما تستحقه الأعيان في حال عدمها و ميز بعضها عن بعض بهذه النسبة الإحاطية و لو لا ذلك لكانت نسبة الممكنات في قضية العقل فيما يجب لها من الوجود نسبة واحدة و ليس الأمر كذلك و لا وقع كذلك بل علم سبحانه ما يتقيد من الممكنات في وجوده بأمس لا يمكن عنده أن يوجده اليوم و لا في غد فإنه من تمام خلقه تعيين زمانه و هو القدر و هي الأقدار أي مواقيت الإيجاد فهو سبحانه يخلق من غير حكم قدر عليه في خلقه و المخلوقات تطلب الأقدار بذاتها ف‌ ﴿أَعْطىٰ كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ﴾ [ طه:50] من زمانه فيمن يتقيد وجوده بالزمان و من حاله فيمن يتقيد وجوده بالحال و من صفته فيمن يتقيد وجوده بالصفة فإن قلت فيه مختار صدقت و إن قلت حكيم صدقت و إن قلت لم يوجد هذه الأمور على هذا الترتيب إلا بحسب ما أعطاه العلم صدقت و إن قلت ذاته اقتضت أن يكون خلق كل شيء على ما هو عليه ذلك الشيء في ذاته و لوازمه و أعراضه لا تتبدل و لا تتحول و لا في الإمكان أن يكون ذلك اللازم أو العارض لغير ذلك الممكن صدقت فبعد أن أعلمتك صورة الأمر على ما هو عليه فقل ما تشاء فإن قولك من جملة من أعطى خلقه في ظهوره منك فهو من جملة الأعراض في حقك و له صفة ذاتية و لازمة و عرضية من حيث نفسه فاعلم ذلك

[الميل إلى الحق عدل و عنه جور]

و أما تحقيق هذا الاسم لهذه النسبة فاعلم أن العدل هو الميل يقال عدل عن الطريق إذا مال عنه و عدل إليه إذا مال إليه و سمي الميل إلى الحق عدلا كما سمي الميل عن الحق جورا بمعنى إن اللّٰه خلق الخلق بالعدل أي أن الذات لها استحقاق من حيث هويتها و لها استحقاق من حيث مرتبتها و هي الألوهية فلما كان الميل مما تستحقه الذات لما تستحقه الألوهية التي تطلب المظاهر لذاتها سمي ذلك عدلا أي ميلا من استحقاق ذاتي إلى استحقاق إلهي لطلب المألوه ذلك الذي يستحقه و من أعطى المستحق ما يستحقه سمي عادلا و عطاؤه عدلا و هو الحق فما خلق اللّٰه الخلق إلا بالحق و هو إعطاؤه خلقه ما يستحقونه و ليس وراء هذا البيان و بسط العبارة ما يزيد عليها في الوضوح

(السؤال التاسع و العشرون)ما فضل النبيين بعضهم على بعض و كذلك الأولياء



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