The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

يعني من صلة الأرحام و أن يصلوا من قطعهم من المؤمنين بما أمكنهم من السلام عليهم فما فوقه من الإحسان و لا يؤاخذ بالجريمة التي له الصفح عنها و التغافل و لا يقطعون أحدا من خلق اللّٰه إلا من أمرهم الحق بقطعه فيقطعونه معتقدين قطع الصفة لا قطع ذواتهم فإن الصفة دائمة القطع في حق هؤلاء اتصف بها من اتصف فهم ينتظرون به رحمة اللّٰه أن تشمله و الوصل ضد القطع

[الوجود مبنى على الوصل]

و لما كان الوجود مبنيا على الوصل و لهذا دل العالم على اللّٰه و اتصف بالوجود الذي هو اللّٰه فالوصل أصل في الباب و القطع عارض يعرض و لهذا جعل اللّٰه بينه و بين عباده حبلا منه إليهم يعتصمون به و يتمسكون ليصح الوصلة بينهم و بين اللّٰه سبحانه قال النبي صلى اللّٰه عليه و سلم الرحم شجنة من الرحمن أي هذه اللفظة أخذت من الاسم الرحمن عينا و غيبا فمن وصلها وصله اللّٰه و من قطعها قطعه اللّٰه و قطعه إياها هو قطع اللّٰه لا أمر زائد فلما علموا أن الحق تعالى ما دعاهم إليه و لا شرع لهم الطريق الموصل إليه إلا ليسعدوا بالاتصال به فهم الواصلون أهل الأنس و الوصال

فهم الذين همو همو *** أهل المودة في القديم

[اتصال داخل الأنفاس بخارجها]

و «قد ورد في الخبر لا تحاسدوا و لا تدابروا و لا تقاطعوا و كونوا عباد اللّٰه إخوانا» فنهوا عن التقاطع أ لا ترى اتصال الأنفاس داخلها بخارجها يؤذن بالبقاء و الحياة فإذا انقطعت الوصلة بين النفسين فخرج الداخل يطلب دخول الخارج فلم يجده مات الإنسان لانقطاع تلك الوصلة التي كانت بين النفسين فالواصلون ما أمر اللّٰه به أن يوصل ذلك هو عين وصلتهم بالله تعالى فأثنى عليهم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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