The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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[لا شيء أشد من ظلم النفس]

و أما الظالم لنفسه من أهل الشرك فنفسه تطالبه عند اللّٰه بمظلمتها و لا شيء أشد من ظلم النفس أ لا ترى القاتل نفسه الجنة عليه محرمة

[كمال الشيء ما لا يخرجه عن حقيقته]

فثبت بهذا إن الكمال للشيء ما لا يخرجه عن حقيقته فإذا أخرج عن حقيقته و ما تستحقه ذاته كان نقصا فلهذا قلنا إن النصف كمال في حق من هو سهمه مال الورث و إن انقسم إلى ثلث و ربع و ثمن و ثلثين و نصف و سدس و غير ذلك و كل جزء إذا حصل لمستحق صاحب الفريضة فقد حصل له كمال نصيبه فهو موصوف بالكمال في النصيب مع كونه ما حصل له إلا سدس المال إن كان له السدس و لا يتصف بالنقص

[و أتموا الحج و العمرة لله]

قال اللّٰه ﴿وَ أَتِمُّوا الْحَجَّ وَ الْعُمْرَةَ لِلّٰهِ﴾ [البقرة:196] و العمرة بلا شك تنقص في الأفعال عن أفعال الحج و كمالها إتيانها كما شرعت و كذلك الحج يتصف بالكمال إذا استوفيت صورته و كملت نشأته و هما نشأتان ينشئهما العبد المكلف أنشأها بما أعطاه اللّٰه من خلقه على الصورة الإلهية فضرب له بسهم في الربوبية بأن جعل له فعلا و إنشاء فإن انحجب بذلك عن عبوديته فقد نقص و شقي و كان صاحب علة و لهذه العلة جعل اللّٰه له دواء فقال على لسان نبيه صلى اللّٰه عليه و سلم جرح العجماء جبار فأضاف الجرح و هو فعل للعجماء فإن ادعى الربوبية لكونه فاعلا فهو يعلم أنه أفضل من العجماء فإن نسب الفعل إليهما فتنكسر نفسه و يبرأ من علته إن استعمل هذا الدواء ثم يفكر في إن الشرع قد جعل جرح العجماء جبار و جرح الإنسان مأخوذ به على جهة القصاص مع كون العجماء لها اختيار في الجرح و إرادة و لكن العجماء ما قصدت أذى المجروح و إنما قصدت دفع الأذى عن نفسها فوقع الجرح و الأذى تبعا بخلاف الإنسان فإنه قد يقصد الأذى فمن حيوانيته يدفع الأذى و من إنسانيته يقصد الأذى



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