The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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[شرح دعاء الاستخارة بلسان العارفين]

فالعارف إذا استخار ربه في حاجة معينة كانت أو مبهمة فيحضر في قلبه عند قوله اللهم أي يا الله اقصد فأدخل هنا الإرادة لأن القصد الإرادة فحذف الهمزة و اكتفى بالهاء من اللهم لقربها في المخرج و المجاورة و ليدلك بذلك على عظيم الوصلة فإن شرح اللهم أي يا اللّٰه أمنا بالخير أي اقصدنا و قوله إني آنية الشيء حقيقته كناية عن نفسه و قوله أستخيرك بعلمك يقول أي يا اللّٰه أقصد حقيقتي بما اختاره علمك مما لي فيه خير فإنك تعلم ما يصلح لي من الخير و لا أعلم هذا الذي توجهت في طلبه و تقدر على إيجاده و لا أقدر على ذلك فإن كان لي في فعله و ظهور عينه خير فقد علمته فاقدره لي أي افعله لي و إن كان الخير لي في تركه و عدم ظهور عينه فاصرفه عني لكونى استحضرته في خاطري و تخيلته فقد حصل ضرب من الوجود و هو تصوره في خيالي فلا تجعله حاكما علي بظهور عينه فهذا معنى قوله فاصرفه عني ثم قال و اصرفني عنه أي حل بيني و بينه و اجعل بيني و بينه الحجاب الذي بين الوجود و العدم حتى لا أستحضره و لا يحضرني عينا و تخيلا و قوله و استقدرك بقدرتك لأن القدرة صفة الإيجاد و هي أخص تعلقا من العلم فيصرف بالعلم و يوجد بالقدرة و لا يصرف بها فقدم العلم على القدرة لأنه قد يكون له الخيرة في ترك ما طلب فعله و وجوده فكأنه يقول و إن كان في تحصيل ما طلبت تحصيله خير لي فإني أستقدرك بقدرتك أي أقدرني على تحصيله و إن كان ممن يقول بنسبة الفعل للعبد كالمعتزلة و تكون الإضافة في قوله بقدرتك أي بالقدرة التي تخلقها في عبادك و إن كان ممن لا يقول بنسبة الفعل إلى العبد فقوله بقدرتك يعني قدرة الحق التي هي صفته المنسوبة إليه بحكم الصفة لا بحكم الخلق و قوله فإنك تقدر و لا أقدر يتجه هذا قول من الطائفتين أي فإنك تقدر أن تخلق لي القدرة على فعله إن كان قد علمت إن لي فيه خيرا و قد يريد الإخبار عن حقيقة نفي القدرة عن العبد فيقول فإنك تقدر على إيجاده و تحصيل ما طلبته و لا أقدر أي ما لي قدرة أحصله بها لعلمه أن القدرة الحادثة ما لها التكوين و لا تتعدى محلها و قوله و أرضني به أي اجعل الفرح و السرور عندي بحصوله أو بعدم حصوله من أجل ما اخترته لي في سابق علمك و أقدر لي الخير حيث كان و أنت أعلم بالأماكن و الزمان و الأحوال التي لي الخير فيها من غيرها ف‌



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