The Meccan Revelations: al-Futuhat al-Makkiyya

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

بمكاتبة اعتل رجل من إخوان ذي النون فكتب إليه أن يدعو له فكتب إليه ذو النون سألتني أن أدعو اللّٰه لك أن يزيل عنك النعم و اعلم يا أخي أن العلة مجزاة يأنس بها أهل الصفاء و الهمم و الضياء في الحياة ذكرك للشفاء و من لم يعد البلاء نعمة فليس من الحكماء و من لم يأمن الشفيق على نفسه فقد أمن أهل التهمة على أمره فليكن معك يا أخي حياء يمنعك عن الشكوى و السلام و قال بعضهم كتبت إلي تسألني عن حالي فما عسيت إن أخبرك به من حال و أنا بين خلال موجعات أبكاني منهن أربع حب عيني للنظر و لساني للفضول و قلبي للرئاسة و إجابتي إبليس عدو اللّٰه فيما يكره اللّٰه و أقلني منها عين لا تبكي من الذنوب المنتنة و قلب لا يخشع عند نزول الموعظة و عقل وهن فهمه في محبة الدنيا و معرفة كلما قلبتها وجدتني بالله أجهل و أضناني منها إني عدمت خير خصال الايمان الحياء و عدمت خير زاد الآخرة التقوى و فنيت أيامي بمحبة الدنيا و تضييعي قلبا لا أقتني مثله أبدا و وادعه إنسان فقال له قل لأبي يزيد إلى متى النوم و الراحة و قد جازت القافلة فقال أبو يزيد قل لأخي ذي النون الرجل من ينام الليل كله ثم يصبح في المنزل قبل القافلة فقال ذو النون هنيئا له هذا كلام لا تبلغه أحوالنا و كان العلماء يكتب بعضهم إلى بعض بثلاث من أحسن سريرته أحسن اللّٰه علانيته و من أصلح آخرته أصلح اللّٰه له أمر دنياه و من أصلح ما بينه و بين اللّٰه أصلح اللّٰه ما بينه و بين الناس و كتب رجل إلى عالم ما الذي أكسبك علمك من ربك و ما أفادك في نفسك و دينك فكتب إليه العالم أثبت العلم الحجة و قطع عمود الشك و الشبهة و شغلت أيام عمري يطلبه و لم أدرك منه ما فاتني فكتب إليه الرجل العلم نور لصاحبه و دليل على حظه و وسيلة إلى درجات السعداء فكتب إليه العالم أبليت إليه في طلبه جد الشباب فأدركني حين علمت الضعف عن العمل به و لو اقتصرت منه على القليل كان لي فيه مرشد إلى السبيل كان شيخنا أبو عبد اللّٰه المجاهد و شيخنا تلميذه أبو عبد اللّٰه ابن قشوم نائبه في التدريس و الإمامة لا يبرح الورق و المداد و القلم معهما يكتبان كل يوم ما قدر لهما من العلم رغبة أن يحشرا غدا عند اللّٰه من طلاب العلم



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