الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و من ذلك سر المجاورة و المحاورة من الباب 40 المحاورة لا تعقل من غير مجاورة المحاورة مراجعة الحديث في القديم و الحديث الجار أحق بصقبه من صاحب نسبه فإنكم بالأصل من أولي الأرحام و من أهل الالتئام و الالتحام لا يشترط في الجوار الجنس فإنه علم في لبس اللّٰه جار عبده بالمعية و إن انتفت المثلية و العبد جار اللّٰه في حرمه و مطلع على حرمه و هي أعيان كلمات اللّٰه التي لا تنفد و لا تبعد فتبعد

[سر النهار و الليل و الحرمان و النيل]

و من ذلك سر النهار و الليل و الحرمان و النيل من الباب الأحد و الأربعين النهار معاش و الليل لباس فالنيل وجدان و الحرمان إفلاس فقد ارتفع الالتباس النهار حركة و الليل سكون و المحروم من الخلق من يقول للشيء ﴿كُنْ فَيَكُونُ﴾ [البقرة:117] فظهر المنازع بالتكوين و حصل التعيين في الكثرة لوجود التلوين فما جنى على التوحيد إلا الكون و ما نازعه إلا وجود العين فصاحب اللواء من يرى الحق عين السوي

[سر الفتوة المختصة بالنبوة]

و من ذلك سر الفتوة المختصة بالنبوة من الباب 42 الفتى لا يعرف أين و متى أينه دائم مستقر و زمانه حال مستمر التحم أزله بأبده فلا أول و لا انقضاء لأمده لا يعرف الأجل المسمى و لا يقول بفك المعمى الملوان بحكم الفتيان تصرفهما أحوالهم فأعمالهما أعمالهم من عتى ما تفتي و لا سمي بفتى غاية الفتى الخلة لما سد الخلة غار بالرقباء فقطعهم جذاذا و اتخذ الكبير ملاذا : ثم أحالهم على ما أوحي لهم

[سر إلحاق الشبه بالشبه]

و من ذلك سر إلحاق الشبه بالشبه من الباب 43 لو لا الشبه ما كانت الشبه فالظلال أمثال و أي أمثال من أعجب الأمر في الظل مع المثل أن النور يصوره و هو ينفره و الجسم يقرره و يثبته لأنه منبته في لسان الأمة من أشبه أباه ما ظلم أمه أسماؤه الحسنى أسماؤنا فعلى الشبه قام بناؤنا و أحكامنا أحكامه فنحن بكل وجه شعائره و أعلامه فتعظيمنا إياها ﴿مِنْ تَقْوَى الْقُلُوبِ﴾ [الحج:32]



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