الفتوحات المكية

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«قوله ترون ربكم» كما صدق ﴿لَنْ تَرٰانِي﴾ [الأعراف:143] و للرداء ظاهر و باطن فيراه الرداء بباطنه فيصدق «ترون ربكم» و يصدق مثبت الرؤية و لا يراه ظاهر الرداء فيصدق المعتزلي و يصدق ﴿لَنْ تَرٰانِي﴾ [الأعراف:143] و الرداء عين واحدة و كان الفضل لهذه النشأة الإنسانية على جميع العالم فإن العالم كله دون الإنسان منحاز عن الإنسان متميز عنه فلا يشهد العالم سوى الإنسان الذي هو الرداء و الرداء من حيث ظاهره يشهد من يشهده و هو العالم فيرى الحق ظاهر الرداء بما هو الحق العالم و هي رؤية دون رؤية باطن الرداء فالعالم له الإحاطة لأنه لا يتقيد بجهة خاصة فالحق وجه كله و الرداء وجه كله فهو الظاهر تعالى للعبد من حيث العالم و هو الباطن لنفسه عن العالم من حيث ما له صورة في العالم و من حيث إن الرداء بينه و بين العالم فإن الصورة التي للحق في عين العالم الحق لها باطن من حيث إن الرداء حائل بينه و بين الحق الذي العالم به فهو باطن لنفسه و للعالم و لا يصح أن يكون باطنا لباطن الرداء لكن لظاهره فالإنسان الكامل يشهده تعالى في الظاهر بما هو في العالم و في الباطن بما هو مرتد فتختلف الرؤية على الإنسان الكامل و العين واحدة و لهذا ينكره بعض الناس في القيامة إذا تجلى و الكامل لا ينكره فإنه ما كل إنسان له الكمال فما ينكره إلا الإنسان الحيوان لأنه جزء من العالم فإذا تجلى له في العلامة و تحول فيها عرفه لأنه ما يعرفه إلا مقيدا فالإمام تابع للمأموم في الأحوال و المأموم يتبع الإمام في الأفعال و في بعض الأقوال فلو لا الكبرياء ما عرف الكبير

فقد بان عين الحق في عين نفسه *** و بان لذي عينين من كبرياؤه

و هذا وجود الجود ما ثم غيره *** و هذا صباح قد تلاه مساؤه



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