الفتوحات المكية

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و القرابة قرابتان قرابة الدين و قرابة الطين فمن جمع بين القرابتين فهو أولى بالصلة و إن انفرد أحدهما بالدين و الآخر بالطين فتقدم قرابة الدين على قرابة الطين كما فعل الحق تعالى في الميراث فورث قرابة الدم و لم يورث قرابة الطين إذا اختلفا في الدين فكان الواحد مؤمنا بالله وحده و الأخ الآخر كافر بأحدية اللّٰه و مات أحد الأخوين لم يجعل له نصيبا في ميراثه فقال لا يتوارث أهل ملتين و قد ذهب عقيل دون علي بن أبي طالب بمال أبيه لما مات أبو طالب عم رسول اللّٰه ﷺ و كل من قطع رحمه في حق شخص و هو قد وصلها في حق شخص آخر فالذي يرعى اللّٰه من ذلك جانب الوصلة لا جانب القطع فإنه القائل على لسان رسوله ﷺ أتبع السيئة مثل قطع تلك الرحم الحسنة مثل وصلة الرحم تحمها فوصل رحمه في زيد يمحو قطع رحمه في عمرو و هذا أخوه و هذا أخوه لأن اللّٰه يصل الرحم و لا يقطعها فالحق يعضده في صلة من وصلها و يقطع من قطعها لأنه عين ذلك الذي قطعها ففي الوصل كلمة عناية إلهية بالواصل و في القطع كلمة تحقيق أي أن الأمر كذلك فما في العالم إلا من هو وصول رحمه الأقوى الأقرب فإن أفضل الصلات في الأرحام صلة الأقرب فالأقرب و قد جاء في الصدقة أن أفضلها اللقمة يجعلها الإنسان في فمه لأنه لا أحد أقرب إليه من نفسه و اللّٰه أقرب إلى العبد من نفسه منه فإنه القائل ﴿نَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ﴾ [ق:16] فإذا وصله العبد فقد وصل الأقرب بلا شك فقد أتى ما هو الأولى بالوصل في الأقربين فإن النص فيه و لهذا عم كل الأشياء اتساع رحمته فمن حجر رحمة اللّٰه فما حجرها إلا على نفسه و لو لا أن الأمر على خلاف ذلك لم ينل رحمة اللّٰه من حجرها و قصرها و لكن و اللّٰه ما يستوي حكم رحمة اللّٰه فيمن حجرها بمن لم يحجرها و أطلقها من عين المنة كما أطلقها اللّٰه في كتابه في قوله ﴿وَ رَحْمَتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ﴾ [الأعراف:156]



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