الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

يعني من جهنم ﴿مَكٰاناً ضَيِّقاً مُقَرَّنِينَ دَعَوْا هُنٰالِكَ ثُبُوراً﴾ [الفرقان:13] هذه الأحوال للنفوس الحيوانية و النفوس الناطقة ملتذة بما تعلمه من اختلاف أحوال مراكبها لأنها في مزيد علم بذلك إلهي مناسب أ لا ترى ذوقا هنا في شخصين لكل واحد منهما نفس ناطقة و نفس حيوانية فيطرأ على كل واحد من الشخصين سبب مؤلم فيتألم به الواحد و يتنعم به الآخر لكون الواحد و إن كان ذا نفس ناطقة فحيوانيته غالبة عليه فتبقى النفس الناطقة منه معطلة الآلة الفكرية النظرية و الآخر لم تتعطل نفسه الناطقة عن نظرها و فكرها و مشاهدتها و من أين قام بنفسها الحيوانية ذلك الأمر المؤلم حتى يوصلها ذلك إلى السبب الأول فتستغرق فيه فتتبعها في ذلك النفس الحيوانية فيزول عنها الألم مع وجود السبب و كلا الشخصين كما قلنا ذو نفس ناطقة و سبب مؤلم فارتفع الألم في حق أحد الشخصين و لم يرتفع في حق الآخر فإن الحيوان بنور النفس الناطقة يستضيء فإذا صرفت النفس الناطقة نظرها إلى جانب الحق تبعها نورها كما يتبع نور الشمس الشمس بغروبها و أفولها فتلتذ النفس الحيوانية بما يحصل لها من الشهود لما لم تره قبل ذلك فلا ألم و لا لذة إلا للنفوس الحيوانية إن كان كما ذكرناه فهي لذة علمية و إن كان عن ملاءمة طبع و مزاج و نيل غرض فلذة حسية و النفس الناطقة علم مجرد لا يحتمل لذة و لا ألما و يطرأ على الإنسان الذي لا علم له بالأمر على ما هو عليه في نفسه تلبيس و غلط فيتخيل إن النفس الناطقة لها التذاذ بالعلوم حتى قالوا بذلك في الجناب الإلهي و إنه بكماله مبتهج فانظر بذلك يا أخي ما أبعد هؤلاء من العلم بحقائق الأمور و ما أحسن «قول الشارع من عرف نفسه عرف ربه»



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