الفتوحات المكية

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لأن الرحمة منبثة في المواطن كلها فانبث العالم في طلبها لكون العالم على أحوال مختلفة و صور متنوعة الوجوه فتطلب بذلك الانبثاث من اللّٰه الرحمة التي تذهب منه تلك الصورة التي تؤديه إلى الشقاء فهذا سبب انبثاثهم في ذلك اليوم و كذلك الجبال الصلبة تكون ﴿كَالْعِهْنِ الْمَنْفُوشِ﴾ [القارعة:5] لما خرجت عنه من القساوة إلى اللين الذي يعطي الرحمة بالعباد و لا يدري ما قلناه إلا أهل الشهود و المتحققون بحقائق الوجود و أما من بقي مع ثقليته فإن الثقلين ما سماهما اللّٰه بهذا الاسم إلا ليميزهما به عمن سواهما دائما حيث كانا فلا تزال أرواحهما تدبر أجساما طبيعية و أجسادا دنيا و برزخا و آخرة و كذلك منازلهما التي يسكنونها من جنس نشأتهما فما لهما نعيم إلا بالمشاكل لطبعهما و أما القائلون بالتجريد فهم مصيبون فإن النفس الناطقة مجردة في الحقيقة عن هذه الأجسام و الأجساد الطبيعية و ما لها فيها إلا التدبير غير أنهم ما عرفوا إن هذا التدبير لهذه النفوس دائما أبدا فهم مصيبون من هذا الوجه إن قصدوه مخطئون إن قالوا بأنها تنفصل عن التدبير فالنفوس الناطقة عندنا متصلة بالتدبير منفصلة بالذات و الحد و الحقيقية الشخصية فلا متصلة و لا منفصلة و التدبير لها ذاتي كمثل الشمس فإن لها التدبير الذاتي فيما تنبسط عليه أنوار ذاتها غير إن الفرق بين الشمس و القمر و الكواكب و أكثر الأسباب التي جعل اللّٰه فيها مصالح لعالم لذاتها لا علم لها بذلك و النفوس الناطقة و إن كان تدبيرها ذاتيا فهي عالمة بما تدبره فالنفوس الفاضلة منها التي لها الكشف تطلع على جزئيات ما هي مدبرة لها بذاتها و غير الفاضلة لا تعلم بجزئيات ذلك و قد تعلم و لا تعلم أنها تعلم و هكذا كل روح مدبرة فمن له التدبير للعالم هو الأعلم بجزئيات العالم و هو اللّٰه تعالى العالم بالجزء المعين و الكل مع التدبير الذاتي الذي لا يمكن إلا هو فالنفوس السعيدة مراكبها النفوس الحيوانية في ألذ عيش و أرغده يوم القيامة أعطاها ذلك الموطن كما أنها في أشد ألم و أضيق حبس إذا شقيت و حبست في المكان الضيق كما قال تعالى ﴿وَ إِذٰا أُلْقُوا مِنْهٰا﴾ [الفرقان:13]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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