الفتوحات المكية

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فمن رجع إلى اللّٰه هذا الرجوع سعد و ما أحس بالرجوع المحتوم الاضطراري فإنه ما جاءه إلا و هو هناك عند اللّٰه فغاية ما يكون الموت المعلوم في حقه أن نفسه التي هي عند اللّٰه يحال بينها و بين تدبير هذا الجسم الذي كانت تدبره فتبقى مع الحق على حالها و ينقلب هذا الجسد إلى أصله و هو التراب الذي منه نشأت ذاته فكان دارا رحل عنها ساكنها فأنزله الملك ﴿فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ﴾ [القمر:55] عنده ﴿إِلىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ﴾ [الأعراف:14] و يكون حاله في بعثه كذلك لا يتغير عليه حال من كونه مع الحق لا من حيث ما يعطيه الحق مع الأنفاس و هكذا في الحشر العام و في الجنان التي هي مقره و مسكنه و في النشأة التي ينزل فيها فيرى نشأة مخلوقة على غير مثال تعطيه هذه النشأة في ظهورها ما تعطيه نشأة الدنيا في باطنها و خيالها فعلى ذلك الحكم يكون تصرف ظاهر النشأة الآخرة فينعم بجميع ملكه في النفس الواحد و لا يفقده شيء من ملكه من أزواج و غير هن دائما و لا يفقدهم فهو فيهم بحيث يشتهي و هم فيه بحيث يشتهون فإنها دار انفعال سريع لا بطء فيه كباطن هذه النشأة الدنياوية في الخواطر التي لها سواء فالإنسان في الآخرة مقلوب النشأة فباطنه ثابت على صورة واحدة كظاهره هنا و ظاهره سريع التحول في الصور كباطنه هنا قال تعالى ﴿أَيَّ مُنْقَلَبٍ يَنْقَلِبُونَ﴾ [الشعراء:227] و لما انقلبنا قلبنا فما زاد علينا شيء مما كنا عليه فافهم و هذا الرجوع المذكور في هذا الوصل ما هو رجوع التوبة فإنه لذلك الرجوع المسمى توبة حد خاص عند علماء الرسوم و عندنا و هذا رجوع عام في كل الأحوال التي يكون عليها الإنسان فهذا الفرق بين الرجوعين فإن التوبة رجعة بندم و عزم على أمر و هذا ليس كذلك فالتوبة في العموم معلومة و هذا الرجوع في الخصوص معلوم لا يناله إلا أهل اللّٰه الذين هم هم

إن الرجوع هو المطلوب لله *** إليه عن كل كون فيه بالله

فلا تقولن للأشياء لست به *** فليس في الكون إلا هو و إلا هي



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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