الفتوحات المكية

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﴿لاٰ عِلْمَ لَنٰا إِنَّكَ أَنْتَ عَلاّٰمُ الْغُيُوبِ﴾ [المائدة:109] فيعلم أهل الموقف أصحاب الكشف أن الرسل هم أتم العالم كشفا و مع هذا فما أطلعهم اللّٰه على إجابة القلوب من أممهم و لا إجابة من وصلت إليهم دعوتهم و لم يكونوا حاضرين و لا من كان حاضرا و أجابه بلسانه هل أجابه بقلبه كما أجابه بلسانه فإن قلت فقد سمع إجابة من أجابه بلسانه و ما أجابه به قلنا لقرائن الأحوال حكم لا يعرفه إلا من شاهدها و قد عرفنا من عين جواب الرسل عليه السّلام أنهم فهموا عن اللّٰه عند هذا السؤال أنه أراد إجابة القلوب فإنهم قالوا ﴿لاٰ عِلْمَ لَنٰا إِنَّكَ أَنْتَ عَلاّٰمُ الْغُيُوبِ﴾ [المائدة:109] فلو فهموا من سؤاله تعالى إجابة الألسنة لفصلوا بين من سمعوا إجابته بإقراره بلسانه و بين من لم يسمعوا ذلك منه فلما ذكروا في الجواب الغيوب علمنا إن السؤال كان عن جواب القلوب و استفدنا من هذا أن الذي يكشف له ما يلزم أن يعم كشفه كل شيء لكن عنده استعداد الكشف لا غير فما جلى له الحق من أسرار العالم في مرآة قلبه إن كان معنى أو في مرآة بصره إن كان صورة كشفه و رآه لا غير فإن قلت فمن كان الحق بصره قد سمعتك تقول فيمن هذا حاله إنه يدرك كل مبصر في الكون و لا يغيب عن بصره شيء لأنه ناظر بحق قلنا صدقت و لكن فرق ما بين المقام و الحال و الأحوال لا بقاء لها و هذا حال فعند حصوله صح له هذا الكشف في ذلك الزمان و لما رفع عنه رجع ينظر بعين خلق بإمداد حق لا بحق فيكون حكمه حكم خواص الخلق له الكشف الجزئي لا الكلي إذ لا يكشف إلا المعتاد الذي للعموم فإذا كشف كل مبصر في العالم كشفه على ما هو عليه في وقته فلما رفع عنه لم يعرف ما آل إليه أمر تلك المبصرات في زمان رفع هذا الكشف هل بقوا على ما كانوا عليه أو هل انتقلوا عن ذلك و طلب اللّٰه منهم العلم بذلك لقولهم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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