الفتوحات المكية

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و لهذه التسعة عشرة رحمة التي هي الرحمة المركبة فأعطاهم في جهنم نعيم المقرور و المحرور لأن نعيم المقرور بوجود النار و نعيم المحرور بوجود الزمهرير فتبقى جهنم على صورتها ذات حرور و زمهرير و يبقى أهلها متنعمين فيها بحرورها و زمهريرها و لهذا أهل جهنم لا يتزاورون إلا أهل كل طبقة في طبقتهم فيتزاور المحرورون بعضهم في بعض و يتزاور المقرورون بعضهم في بعض لا يزور مقرور محرورا و لا محرور مقرورا و أهل الجنة يتزاورون كلهم لأنهم على صفة واحدة في قبول النعيم لأنهم كانوا هنا أعني في دار التكليف أهل توحيد لم يشركوا توحيد علم أو توحيد إيمان و أهل النار لم يكن لهم صفة التوحد و كانوا أهل شرك فلهذا لم يكن لهم صفة أحدية تعمهم في النعيم مطلقا من غير تقييد فهم في جهنم فريقان و أهل الجنة فريق واحد فينفرد كل شريك بطائفة و هؤلاء هم الثنوية ما ثم غيرهم و هم أهل النار الذين هم أهلها و أما أهل التثليث فيرجى لهم التخلص لما في التثليث من الفردية لأن الفرد من نعوت الواحد فهم موحدون توحيد تركيب فيرجى أن تعمهم الرحمة المركبة و لهذا سموا كفارا لأنهم ستروا الثاني بالثالث فصار الثاني بين الواحد و الثالث كالبرزخ فربما لحق أهل التثليث بالموحدين في حضرة الفردانية لا في حضرة الوحدانية و هكذا رأيناهم في الكشف المعنوي لم نقدر أن نميز ما بين الموحدين و أهل التثليث إلا بحضرة الفردانية فإني ما رأيت لهم ظلا في الوحدانية و رأيت أعيانهم في الفردية و رأيت أعيان الموحدين في الوحدانية و الفردانية فعلمت الفرق بين الطائفتين و أما ما زاد على أهل التثليث فالكل ناجون بحمد اللّٰه من جهنم و نعيمهم في الجنة يتبوءون منها حيث يشاءون كما كانوا في الدنيا ينزلون من حضرات الأسماء الإلهية حيث يشاءون بوجه حق مشروع لهم كما كانوا إذا توضئوا يدخلون من أي باب شاءوا من أبواب الجنة الثمانية و إذا علمت هذا



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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