الفتوحات المكية

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﴿سَنُرِيهِمْ آيٰاتِنٰا﴾ [فصلت:53] فذكر الرؤية و الآيات للتجلي فيتبين لهم أنه الحق يعني ذلك التجلي الذي رأوه علامة أنه علامة على نفسه ف‌ ﴿يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ﴾ [فصلت:53] المطلوب و لهذا تمم فقال في الآية عينها ﴿أَ وَ لَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ﴾ [فصلت:53] يعني أن يكون دليلا على نفسه و أوضح الدلالات دلالة الشيء على نفسه بظهوره فلما حصلت لعقولهم هذه المعرفة بالتنزيه عما نسبوه إلى ذوات العالم و هو دليل واحد العين متردد في الدلالة بين سلب لمعرفة اللّٰه و بين إثبات لمعرفة العالم أقام الحق لهذا الجنس الإنساني شخصا ذكر أنه جاء إليهم من عند اللّٰه برسالة يخبرهم بها فنظروا بالقوة المفكرة فرأوا إن الأمر جائز ممكن فلم يقدموا على تكذيبه و لا رأوا علامة تدل على صدقه فوقفوا و سألوه هل جئت إلينا بعلامة من عنده حتى نعلم أنك صادق في رسالتك فإنه لا فرق بيننا و بينك و ما رأينا لك أمرا تميزت به عنا و باب الدعوى مفتوح و من الدعوى ما يصدق و منها ما لا يصدق فجاء بالمعجزة فنظروا فيها نظر إنصاف و هي بين أمرين الواحد أن تكون مقدورة لهم فيدعي الصرف عنها مطلقا فلا تظهر إلا على يدي من هو رسول إلى يوم القيامة هذا إذا كانت معجزة لا آية فقط فإن المعجزات نصبت للخصم الألد الفاقد نور الايمان و الأمر الآخر أن تكون المعجزة خارجة عن مقدور البشر بالحس و الهمة معا فإذا أتى بأحد هذين الأمرين و تحققه الناظر دليلا آمن برسالته و صدقه في مقالته و إخباره عن ربه إذا كانت الدلالة على المجموع بحسب ما وقعت به الدعوى و لا يمكن في ذوق طريقنا تصديقه مع الدلالة إلا بتجل إلهي لقلبه من اسمه النور فإذا انصبغ باطنه بذلك النور صدقه فذلك نور الايمان و غيره لم يحصل عنده من ذلك النور شيء مع علمه بأنه صادق من حيث الدلالة لا من حيث النور المقذوف في القلب فجحد مع علمه و هو قوله تعالى ﴿وَ جَحَدُوا بِهٰا وَ اسْتَيْقَنَتْهٰا أَنْفُسُهُمْ ظُلْماً وَ عُلُوًّا﴾ [النمل:14]



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