الفتوحات المكية

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و دونهم في هذه الرتبة من قيل فيه و أضله اللّٰه على علم فذلك نور العلم به لا نور الايمان فلما صدقه من صدقه و أظهر صدقه و اعتمد على عقله حيث قاده إلى الحق و لم يحصل له ضوء من نور الايمان يستضيء به و ما علم أنه بذلك النور صدقه لا بنور علمه الذي هو عند من جحده مع علمه بصدق دعواه فلما اعتمد على عقله هذا المصدق و جاء آخر من المصدقين به أيضا كشف اللّٰه له عن نور إيمانه و نور علمه فكان نورا على نور و جاء ثالث ما عنده من نور العلم النظري شيء و لا يعرف موضع الدلالة من تلك الآية المعجزة و قذف اللّٰه في قلبه نور الايمان فآمن و صدق و ليس معه نور علم نظري و لكن فطرة سليمة و عقل قابل و هيكل منور بعيد من استعمال الفكر فسارع في القبول فقعد هؤلاء الثلاثة الأصناف بين يدي هذا الرسول الذي صدقوه فأخذ الرسول يصف لهم مرسله الحق تعالى ليعرفهم به المعرفة التي ليست عندهم مما كانوا قد أحالوا مثل ذلك على الحق تعالى و سلبه عنه أهل الأدلة النظرية و أثبتوا تلك الصفات للمحدثات دلالة على حدوثها فلما سمعوا ما تنكره الأدلة العقلية النظرية و ترده افترقوا عند ذلك على فرق فمنهم من ارتد على عقبه و شك في دليله الذي دله على صدقه و أقام له في ذلك الدليل شبهات قادحة فيه صرفته عن الايمان و العلم به فارتد على عقبه و منهم من قال إن في جمعنا هذا من ليس عنده سوى نور الايمان و لا يدري ما العلم و لا ما طريقه و هذا الرسول لا نشك في صدقه و في حكمته و من الحكمة مراعاة الأضعف فخاطب هذا الرسول بهذه الصفات التي نسبها إلى ربه أنه عليها هذا الضعيف الذي لا نظر له في الأدلة و ليس عنده سوى نور الايمان رحمة به لأنه لا ينبت له الايمان إلا بمثل هذا الوصف و للحق أن يصف نفسه بما شاء على قدر عقل القابل و إن كان في نفسه على خلاف ذلك و اتكل هذا المخبر بهذا الوصف و المراعي حق هذا الأضعف على ما يعرفه من علمنا به و تحققه من صدقنا فيه و وقوفنا مع دليلنا فلا يقدح شيء من هذا فيما عندنا إذ قد عرفنا مقصود هذا الرسول بالأمر فثبتوا على إيمانهم مع كونهم أحالوا ما وصف الرسول به ربه في أنفسهم و أقروه حكمة و استجلابا للأضعف و فرقة أخرى من الحاضرين قالوا هذا الوصف يخالف الأدلة و نحن على يقين من صدق هذا المخبر و غايتنا في معرفتنا بالله سلب ما نسبناه لحدوثها فهذا أعلم بالله منا في هذه النسبة فنؤمن بها تصديقا له و نكل علم ذلك إليه و إلى اللّٰه فإن الايمان بهذا اللفظ ما يضرنا و نسبة هذا الوصف إليه تعالى مجهولة عندنا لأن ذاته مجهولة من طريق الصفات الثبوتية و السلب فما يعول عليه و الجهل بالله هو الأصل فالجهل بنسبة ما وصف الحق نفسه به في كتابه أعظم فلنسلم و لنؤمن على علمه بما قاله عن نفسه و فرقة أخرى من الحاضرين قالوا لا نشك في دلالتنا على صدق هذا المخبر و قد آتانا في نعت اللّٰه الذي أرسله إلينا بأمور إن وقفنا عند ظاهرها و حملناها عليه تعالى كما نحملها على نفوسنا أدى إلى حدوثه و زال كونه إلها و قد ثبت فننظر هل لها مصرف في اللسان الذي جاء به فإن الرسول ما أرسل ﴿إِلاّٰ بِلِسٰانِ قَوْمِهِ﴾ [ابراهيم:4]



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