الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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و وجدنا بسم ذا نقطة و الرحمن كذلك و الرحيم ذا نقطتين و اللّٰه مصمت فلم توجد في اللّٰه لما كان الذات و وجدت فيما بقي لكونهم محل الصفات فاتحدت في بسم آدم لكونه فردا غير مرسل و اتحدت في الرحمن لأنه آدم و هو المستوي على عرش الكائنات المركبات و بقي الكلام على نقطتي الرحيم مع ظهور الألف فالياء الليالي العشر و النقطتان الشفع و الألف الوتر و الاسم بكليته و الفجر و معناه الباطن الجبروتي و الليل إذا يسرى و هو الغيب الملكوتي و ترتيب النقطتين الواحدة مما تلي الميم و الثانية مما تلي الألف و الميم وجود العالم الذي بعث إليهم و النقطة التي تليه أبو بكر رضي اللّٰه عنه و النقطة التي تلي الألف محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و قد تقببت الياء عليهما كالغار ﴿إِذْ يَقُولُ لِصٰاحِبِهِ لاٰ تَحْزَنْ إِنَّ اللّٰهَ مَعَنٰا﴾ [التوبة:40] فإنه واقف مع صدقه و محمد عليه السّلام واقف مع الحق في الحال الذي هو عليه في ذلك الوقت فهو الحكيم كفعله يوم بدر في الدعاء و الإلحاح و أبو بكر عن ذلك صاح فإن الحكيم يوفي المواطن حقها و لما لم يصح اجتماع صادقين معا لذلك لم يقم أبو بكر في حال النبي صلى اللّٰه عليه و سلم و ثبت مع صدقه به فلو فقد النبي صلى اللّٰه عليه و سلم في ذلك الموطن و حضره أبو بكر لقام في ذلك المقام الذي أقيم فيه رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم لأنه ليس ثم أعلى منه يحجبه عن ذلك فهو صادق ذلك الوقت و حكيمه و ما سواه تحت حكمه فلما نظرت نقطة أبي بكر إلى الطالبين أسف عليه فأظهر الشدة و غلب الصدق و قال ﴿لاٰ تَحْزَنْ﴾ [آل عمران:139] لأثر ذلك الأسف ﴿إِنَّ اللّٰهَ مَعَنٰا﴾ [التوبة:40] كما أخبرتنا و إن جعل منازع أن محمدا هو القائل لم نبال لما كان مقامه صلى اللّٰه عليه و سلم الجمع و التفرقة معا و علم من أبي بكر الأسف و نظر إلى الألف فتأيد و علم أن أمره مستمر إلى يوم القيامة قال



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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