الفتوحات المكية

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و ما قال عن الصدق فإن أضاف الصادق إذا سأل صدقه إلى ربه لا إلى نفسه و كان صادقا في هذه الإضافة إنها وجدت منه في حين صدقه في ذلك الأمر في الدار الدنيا ارتفع عنه الاعتراض فإن الصادق هو اللّٰه و هو قوله المشروع لا حول و لا قوة إلا بالله فإذا كانت القوة به و هي الصدق فإضافتها إلى العبد إنما هو من حيث إيجادها فيه و قيامها به و إن قال عند سؤال الحق إياه عن صدقه إنه لما صدق في فعله أو قوله في الدنيا لم يحضر في صدقه إن ذلك بالله كان منه كان صادقا في الجواب عند السؤال و نفعه ذلك عند اللّٰه في ذلك الموطن و حشر مع الصادقين و صدق في صدقه و هذا من أغمض ما يحتوي عليه هذا المقام و يطرأ فيه غلط كبير في هذا الطريق و هو أن يقول المريد أو العارف كلاما ما يترجم به عن معنى في نفسه قد وقع له و يكون في قوة دلالة تلك العبارة أن تدل على ذلك المعنى و على غيره من المعاني التي هي أعلى مما وقع له في الوقت ثم يأتي هذا الشخص في الزمان الآخر فيلوح له من مطلق ذلك اللفظ معنى غامض هو أعلى و أدق و أحسن من المعنى الذي عبر عنه بذلك اللفظ أولا فإذا سأل عن شرح قوله ذلك شرحه بما ظهر له في ثاني الحال لا بأول الوضع فيكون كاذبا في أصل الوضع صادقا في دلالة اللفظ فالصادق يقول كان قد ظهر لي معنى ما و هو كذا فأخرجته أو كسوته هذه العبارة ثم إنه لاح لي معنى هو أعلى منه لما نظرت في مدلول هذه العبارة فتركت هذه العبارة عليه أيضا في الزمان الثاني و لا يقول خلاف هذا و هذا من خفي رياسة النفوس و طلبها للعلو في الدنيا و قد ذم اللّٰه من طلب علوا في الأرض فإذا أراد العارف أن يسلم من هذا الخطر و يكون صادقا إذا أراد أن يترجم عن معنى قام له فليحضر في نفسه عند الترجمة أنه يترجم عن اللّٰه عن كل ما يحويه ذلك اللفظ من المعاني في علم اللّٰه و من جملتها المعنى الذي وقع له فإذا أحضر هذا و لاح له ما شاء اللّٰه أن يمنحه من المعاني التي يدل عليها ذلك اللفظ كان صادقا في الشرح أنه قصد ذلك المعنى على الإجمال و الإبهام لأنه لم يكن يعلم على التعيين ما في علم اللّٰه مما يدل عليه ذلك اللفظ إحضار مثل هذا عند كل إخبار وقت الإخبار عزيز لسلطان الغفلة و الذهول الغالب على الإنسان فليعود الإنسان نفسه مثل هذا الاستحضار فإنه نافع في استدامة المراقبة و الحضور مع الحق و هذا التنبيه الذي نبهت الصادقين عليه ما يشعر به أكثر أهل طريقنا فإنهم لا يحققون معناه و ربما يتخيلون فيه أنه شبهة فيفرون منه و ليس كذلك بل ذلك هو غاية الأدب البشري مع اللّٰه حيث يعبر عما في علم اللّٰه فهذا من الأدوية النافعة لهذا المرض لمن استعمله وفقنا اللّٰه و السامعين لاستعماله و استعمال أمثاله

[الأولياء الصابرون]



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