الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

إشارة إلى هذا المقام أعني علم الوهب ﴿وَ مِنْ تَحْتِ أَرْجُلِهِمْ﴾ [المائدة:66] إشارة إلى علم الكسب و هو العلم الذي يناله أهل التقوى من هذه الأمة فإنه علم كسب إذ كان نتيجة عمل و هو التقوى

[السحور مشتق من السحر و هو اختلاط الضوء و الظلمة]

فاعلم إن السحور مشتق من السحر و هو اختلاط الضوء و الظلمة يريد زمان أكلة السحور فله وجه إلى النهار و له وجه إلى الليل فيما له وجه إلى النهار سماه غذاء فرجح فيه حكم النهار على حكم الليل كما عمل في الفطر فأمر بتعجيله فرجح فيه النهار أيضا على الليل بوجود آثار الشمس فإن الأكل وقع فيه قبل زوال آثار النهار و دلالة فإن النهار قد أدبر لأن حقيقة النهار من طلوع حاجب الشمس الأول إلى غروب حاجب الشمس الآخر فبمغيبه يغيب قرص الشمس و آثار النهار من أول الليل من مغيبه إلى مغيب البياض و آثاره في آخر الليل من طلوع الفجر الأول إلى طلوع الشمس إلا أنه لا يمنع الأكل طلوع الفجر الأول شرعا و في الفجر الثاني خلاف و موضع الإجماع الأحمر و ما كان قبل ذلك فليس بسحر و إنما هو ليل و بعده إنما هو نهار

[الشبهة لها وجه إلى الحق و وجه إلى الباطل]

و هكذا صفة الشبهة لها وجه إلى الحق و لها وجه إلى الباطل في الأمور العقلية و كذلك المتشابه له وجه إلى الحل و له وجه إلى الحرمة و لهذا سمي الفجر الأول الكذاب و ما هو كذاب و إنما أضيف الكذب إليه لأنه ربما يتوهم صاحب السحور أن الأكل محرم عنده و ليس كذلك فإن علته ضرب الشمس أي طرح شعاعها على البحر فيأخذ الضوء في الاستطالة فإذا ارتفعت ذهب ذلك الضوء المنعكس من البحر إلى الأفق فجاءت الظلمة و قرب بروز الشمس إلينا فظهر ضوؤها في الأفق كالطائر الذي فتح جناحيه و لهذا سماه مستطيرا فلا يزال في زيادة إلى طلوع الشمس كذلك الحق و الباطل ﴿فَأَمَّا الزَّبَدُ فَيَذْهَبُ جُفٰاءً وَ أَمّٰا مٰا يَنْفَعُ النّٰاسَ فَيَمْكُثُ﴾ [الرعد:17]



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