الفتوحات المكية

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﴿يُسَبِّحُونَ اللَّيْلَ وَ النَّهٰارَ لاٰ يَفْتُرُونَ﴾ [الأنبياء:20] فلما ظهروا عن هذه الأسماء الرحمانية قالوا يا ربنا لم خلقتنا قال لتعبدون أي لتكونوا أذلاء بين يدي فلم يروا صفة قهر و لا جناب عزة تذلهم و لا سيما و قد قال لهم لتذلوا إلي فأضاف فعل الإذلال إليهم فزادوا بذلك كبرا فلو قال لهم ما خلقتكم إلا لأذلكم لفرقوا و خافوا فإنها كلمة قهر فكانوا يبادرون إلى الذلة من نفوسهم خوفا من هذه الكلمة كما قال للسماوات و الأرض ﴿اِئْتِيٰا طَوْعاً أَوْ كَرْهاً﴾ [فصلت:11] فلو لم يقل كرها فإنها كلمة قهر حيثما أتت فلهذا قلنا ما أوجد كل ما عدا الثقلين و لا خاطبهم إلا بصفة القهر و الجبروت فلما قال للثقلين عن السبب الذي لأجله أوجدهم و خلقهم نظروا إلى الأسماء التي وجدوا عنها فما رأوا اسما إلهيا منها يقتضي أخذهم و عقوبتهم إن عصوا أمره و نهيه و تكبروا على أمره فلم يطيعوه و عصوه ف‌ ﴿عَصىٰ آدَمُ رَبَّهُ﴾ [ طه:121] و هو أول الناس و عصى إبليس ربه فسرت المخالفة من هذين الأصلين في جميع الثقلين يقول النبي صلى اللّٰه عليه و سلم عن آدم لما جحد و نسي ما وهبه لداود من عمره فنسي آدم فنسيت ذريته و جحد آدم فجحدت ذريته ﴿إِلاّٰ مَنْ رَحِمَ رَبُّكَ﴾ [هود:119] فعصمه و لكن من التكبر على اللّٰه لا من تكبر بعضهم على بعض و على سائر المخلوقين فما عصم أحد من ذلك ابتداء فإن اللّٰه قد شاء أن يتخذ ﴿بَعْضُهُمْ بَعْضاً سُخْرِيًّا﴾ [الزخرف:32] و لكن إذا اعتنى اللّٰه بعبده ففي الحالة الثانية يرزقه التوفيق و العناية فيلزم ما خلق له من العبادة فيلحق بسائر المخلوقات و هو عزيز الوجود و أين العبد الذي هو في نفسه مع أنفاسه عبد لله دائما فلا يدل أحد من الثقلين إلا عن قهر يجده فهو في ذله مجبور فإذا وجد ذلك حينئذ يلتفت إلى الأسماء التي عنها وجد و هي أسماء الرحمة فيطلبها لتزيل عنه ما هو فيه من الضيق و الحرج الذي ما اعتاده فيحن إلى جهتها و يعرف أن لها قوة و سلطانا فتنفس عنه ما يجده من ذلك



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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