الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1066 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و من علم الأولين علم الأسماء التي علمها اللّٰه آدم و ربما يكون من علم الآخرين علم هذه المحامد التي يحمد بها ربه يوم القيامة

(مسألة أخرى من هذا الباب)

[الخلافة الإلهية]

إنما كانت الخلافة لآدم عليه السلام دون غيره من أجناس العالم لكون اللّٰه تعالى خلقه على صورته فالخليفة لا بد أن يظهر فيما استخلف عليه بصورة مستخلفه و إلا فليس بخليفة له فيهم فأعطاه الأمر و النهي و سماه بالخليفة و جعل البيعة له بالسمع و الطاعة في المنشط و المكره و العسر و اليسر و أمر اللّٰه سبحانه عباده بالطاعة لله و لرسوله و الطاعة لأولي الأمر منهم فجمع رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم بين الرسالة و الخلافة كداود عليه السلام فإن اللّٰه نص على خلافته عن اللّٰه بقوله تعالى ﴿فَاحْكُمْ بَيْنَ النّٰاسِ بِالْحَقِّ﴾ [ص:26] و أجمل خلافة آدم عليه السلام

[الفرقان بين الرسول و الخليفة]

و ما كل رسول خليفة فمن أمر و نهى و عاقب و عفا و أمر اللّٰه بطاعته و جمعت له هذه الصفات كان خليفة و من بلغ أمر اللّٰه و نهيه و لم يكن له من نفسه إذن من اللّٰه تعالى أن يأمر و ينهى فهو رسول يبلغ رسالات ربه و بهذا بان لك الفرقان بين الرسول و الخليفة

[طاعة اللّٰه و طاعة الرسول و أولى الأمر]

و لهذا جاء بالألف و اللام في قوله تعالى ﴿مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطٰاعَ اللّٰهَ﴾ [النساء:80] و قال عز و جل ﴿يٰا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللّٰهَ﴾ [النساء:59] أي فيما أمركم به على لسان رسوله صلى اللّٰه عليه و سلم مما قال فيه صلى اللّٰه عليه و سلم ﴿إِنَّ اللّٰهَ يَأْمُرُكُمْ﴾ [البقرة:67] و هو كل أمر جاء في كتاب اللّٰه تعالى ثم قال ﴿وَ أَطِيعُوا الرَّسُولَ﴾ [النساء:59]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!