Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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يعني موجودا يقول له ينبغي لك أن تكون و أنت في وجودك من الحال معي كما كنت و أنت في حال عدمك من قبولك لاوامري و عدم اعتراضك يأمره بالوقوف عند حدوده و مر اسمه فيتكلم حيث رسم له أن يتكلم و يتكلم بما أمره به أن يتكلم فيكون سبحانه هو المتكلم بذلك على لسان عبده و كذلك في جميع حركاته و سكناته و أحواله الظاهرة و الباطنة لا يقول في وجوده إنه موجود بل يرى نفسه على صورته في حال عدمه هذا مراد الحق منه بالخطاب فهو محمول بالأصالة غير مستقل فإن المحدث لا يستقل بالوجود من غير المرجح فلا بد أن يكون محمولا و لهذا ما أسرى برسول قط إلا على براق إذا كان إسراء جسميا محسوسا و إذا كان بالإسراء الخيالي الذي يعبر عنه بالرؤيا فقد يرى نفسه محمولا على مركب و قد لا يرى نفسه محمولا على مركب لكن يعلم أنه محمول في الصورة التي يرى نفسه فيها إذ قد علمنا أن جسمه في فراشه و في بيته نائم فاعلم ذلك و أما ما ذهب إليه الشيخ من الاستقلال و عدم الركوب فذلك هو الذي يحذر منه فإنه الاختلاس الذي ذكرنا فإن العبد هنا اختلسته نفسه بالاستقلال و هو في نفسه غير مستقل فأخذه ذلك الاختلاس من يد الحق فتخيل أنه غير محمول فلم يعرف نفسه و من لم يعرف نفسه جهل ربه فكان الغير هنا الذي نظر إليه عين نفسه و ذلك لضعفه في العلم بالأصل الذي هو عليه و لا شك أن مرتبة الرسل عليه السّلام قد جمعت جميع مراتب الرجال من نبوة و ولاية و إيمان و هم المحمولون فمن ورثهم و كان محمولا يعلم ذلك من نفسه و إنما قلنا يعلم ذلك من نفسه لأن الأمر في نفسه أنه محمول و لا بد و لكن من لا علم له بذلك يتخيل أنه غير محمول فلهذا قيدنا و في قوله ﴿يَأْتُوكَ رِجٰالاً﴾ [الحج:27] فالذي دعاهم قال لهم قولوا ﴿وَ إِيّٰاكَ نَسْتَعِينُ﴾ [الفاتحة:5] و قال لهم ﴿اِسْتَعِينُوا بِاللّٰهِ﴾ [الأعراف:128] و اصبر و أو كل معنى محمول بلا شك فإنه غير مستقل بالأمر إذ لو استقل به لما طلب العون و المعين و قوله رضي اللّٰه عنه ﴿رِجٰالٌ لاٰ تُلْهِيهِمْ تِجٰارَةٌ وَ لاٰ بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللّٰهِ﴾ [النور:37]



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