Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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﴿هَيِّناً وَ هُوَ عِنْدَ اللّٰهِ عَظِيمٌ﴾ [النور:15] و هذا كله من الاسم الإلهي الظاهر الذي له التقدم في الأمور و الخير كله إنما هو في الأوائل إلا ترى أن الخاطر الأول هو الإلهي الصادق الذي لا يخطئ أبدا فله العصمة و المضاء و فيه يظهر القدر و القضاء و كذلك النظرة الأولى و المسموع الأول و الحركة الأولى و هو الذي يعطي علوم الزجر للزاجر و هي لا تخطي أبدا بل الصحة تصحبها فالأوائل هي الظواهر السوابق و كل ما جاء بعد الخاطر الأول فهو حديث نفس يجيء على أثره فللخاطر الأول التمهيد و التوطئة و هي الظواهر تعطي العقول التشوق إلى ما وراءها فالفطن المصيب النحرير لا يزول عن الأمر الظاهر الأول الذي ورد عليه حتى يستوفي جميع حقائقه و ما تعطيه صورته و يقف على خفيات غيوبه فإذا حصله و قبله علما حينئذ ينتقل إلى ما يرد عليه في أثره الذي هو باطن فإن جهل الظاهر كان بالباطن أجهل فإنه الدليل عليه و إن فرط في تحصيل الأول كان في تحصيل الآخر أشد تفريطا لأن من الحرص على تحصيل العلم بالخاطر الآخر تحصيل الأول فأول الأمر خوف و الرجاء يتلوه فإن تقدمه الرجاء فقد فاته الخوف فإن الماضي لا يسترجع فالتقدم للخوف و قد فاته و ذهب عنه و من له برده و الرجاء في المحل قد منعه سلطانه فالمؤمن من تساوى خوفه و رجاؤه بحيث إنه لا يفضل واحد صاحبه عنده لأنه استعمل كل شيء في محله و أول نشء الإنسان ضعف و لضعفه يتقدمه الخوف على نفسه ثم تكون له القوة بعد هذا الضعف فيأتيه الرجاء بقوته فإنه يتقوى نظره في العلوم و التأويلات فيعظم رجاؤه في جناب الحق و لكن العاقل لا يتعدى به موطنه فإذا خطر له من قوة الرجاء ما يوجب استعمال الخوف عند العاقل العارف عزل الرجاء عن الانفراد بالحكم و أشرك معه الخوف فذلك المؤمن فلا يزال كذلك إلى أن تكمل ذاته الكمال الذي ينتهي إليه أولياء اللّٰه في الورث النبوي في هذا الزمان المحمدي الذي أغلق فيه باب نبوة التشريع و رسالته و بقي باب حكم الاختصاص بالعلوم الإلهية و الأسرار مفتوحا يدخل عليه أهل اللّٰه و أول داخل عليه أهل هذا الذكر جعلنا اللّٰه ممن استوى خوفه و رجاؤه في الحياة الدنيا إلى حين موته عند الاحتضار فيغلب رجاؤه على خوفه ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]



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