Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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[المعرفة الذاتية و علم القوة]

و كان هذا الإمام له تلميذ كبير في المعرفة الذاتية و علم القوة و كان يتلطف بأصحابه في التنبيه عليه و يستر عن عامة أصحابه ذلك خوفا عليه منهم و لذلك سمي مداوي الكلوم كما استكتم يعقوب يوسف عليهما السلام حذرا عليه من إخوته و كان يشغل عامة أصحابه بعلم التدبير و مثل ذلك مما يشاكل هذا الفن من تركيب الأرواح في الأجساد و تحليل الأجساد و تأليفها بخلع صورة عنها أو خلع صورة عليها ليقفوا من ذلك على صنعة اللّٰه العليم الحكيم و عن هذا القطب خرج علم العالم و كونه إنسانا كبيرا و إن الإنسان مختصرة في الجرمية مضاهية في المعنى فأخبرني الروح الذي أخذت منه ما أودعته في هذا الكتاب أنه جمع أصحابه يوما في دسكرة و قام فيهم خطيبا و كانت عليه مهابة فقال افهموا عني ما أرمزه لكم في مقامي هذا و فكروا فيه و استخرجوا كنزه و اتساع زمانه في أي عالم هو و إني لكم ناصح و مأكل ما يدري يذاع فإنه لكل علم أهل يختص بهم و ما يتمكن الانفراد و لا يسع الوقت فلا بد أن يكون في الجمع فطر مختلفة و أذهان غير مؤتلفة و المقصود من الجماعة واحد إياه أقصد بكلامي و بيده مفتاح رمزى و لكل مقام مقال و لكل علم رجال و لكل وارد حال فافهموا عني ما أقول و عوا ما تسمعون فبنور النور أقسمت و بروح الحياة و حياة الروح آليت إني عنكم لمنقلب من حيث جئت و راجع إلى الأصل الذي عنه وجدت فقد طال مكثي في هذه الظلمة و ضاق نفسي بترادف هذه الغمة و إني سألت الرحلة عنكم و قد أذن لي في الرحيل فأثبتوا على كلامي فتعقلون ما أقول بعد انقضاء سنين عينها و ذكر عددها فلا تبرحوا حتى آتيكم بعد هذه المدة و إن برحتم فلتسرعوا إلى هذا المجلس الكرة و إن لطف مغناه و غلب على الحرف معناه فالحقيقة الحقيقة و الطريقة الطريقة فقد اشتركت الجنة و الدنيا في اللبن و البناء و إن كانت الواحدة من طين و تبن و الأخرى من عسجد و لجين هذا ما كان من وصيته لبنيه و هذه مسألة عظيمة رمزها و راح فمن عرفها استراح

[لقاء ابن عربي بابن رشد في قرطبة]

و لقد دخلت يوما بقرطبة على قاضيها أبي الوليد بن رشد و كان يرغب في لقائي لما سمع و بلغه ما فتح اللّٰه به علي في خلوتي فكان يظهر التعجب مما سمع فبعثني والدي إليه في حاجة قصدا منه حتى يجتمع بي فإنه كان من أصدقائه و أنا صبي ما بقل وجهي و لا طر شاربي فعند ما دخلت عليه قام من مكانه إلى محبة و إعظاما فعانقني و قال لي نعم قلت له نعم فزاد فرحه بي لفهمي عنه ثم إني استشعرت بما أفرحه من ذلك فقلت له لا فانقبض و تغير لونه و شك فيما عنده و قال كيف وجدتم الأمر في الكشف و الفيض الإلهي هل هو ما أعطاه لنا النظر قلت له نعم لا و بين نعم و لا تطير الأرواح من موادها و الأعناق من أجسادها فاصفر لونه و أخذه الأفكل و قعد يحوقل و عرف ما أشرت به إليه و هو عين هذه المسألة التي ذكرها هذا القطب الإمام أعني مداوي الكلوم و طلب بعد ذلك من أبى الاجتماع بنا ليعرض ما عنده علينا هل هو يوافق أو يخالف فإنه كان من أرباب الفكر و النظر العقلي فشكر اللّٰه تعالى الذي كان في زمان رأى فيه من دخل خلوته جاهلا و خرج مثل هذا الخروج من غير درس و لا بحث و لا مطالعة و لا قراءة و قال هذه حالة أثبتناها و ما رأينا لها أربابا فالحمد لله الذي أنا في زمان فيه واحد من أربابها الفاتحين مغالق أبوابها و الحمد لله الذي خصني برؤيته ثم أردت الاجتماع به مرة ثانية فأقيم لي رحمه اللّٰه في الواقعة في صورة ضرب بيني و بينه فيها حجاب رقيق أنظر إليه منه و لا يبصرني و لا يعرف مكاني و قد شغل بنفسه عني فقلت إنه غير مراد لما نحن عليه فما اجتمعت به حتى درج و ذلك سنة خمس و تسعين و خمسمائة بمدينة مراكش و نقل إلى قرطبة و بها قبره و لما جعل التابوت الذي فيه جسده على الدابة جعلت تواليفه تعادله من الجانب الآخر و أنا واقف و معي الفقيه الأديب أبو الحسين محمد بن جبير كاتب السيد أبي سعيد و صاحبي أبو الحكم عمر و ابن السراج الناسخ فالتفت أبو الحكم إلينا و قال أ لا تنظرون إلى من يعادل الإمام ابن رشد في مركوبه هذا الإمام و هذه أعماله يعني تواليفه فقال له ابن جبير يا ولدي نعم ما نظرت لا فض فوك فقيدتها عندي موعظة و تذكرة رحم اللّٰه جميعهم و ما بقي من تلك الجماعة غيري و قلنا في ذلك



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