Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿فَاسْتَقِمْ كَمٰا أُمِرْتَ﴾ [هود:112] لم يخاطبه بالاستقامة المطلقة فإنه قد تقرر أن ﴿إِلَى اللّٰهِ تَصِيرُ الْأُمُورُ﴾ [الشورى:53] و أنه غاية كل طريق و لكن الشأن إلى أي اسم تصل و تصير من الأسماء الإلهية فينفذ في الواصل إليه أثر ذلك الاسم من سعادة و نعيم أو شقاوة و عذاب فمعنى الاستقامة الحركات و السكنات على الطريقة المشروعة

[الصراط المستقيم رأسه منازله أحواله أحكامه]

و الصراط المستقيم هو الشرع الإلهي و الايمان بالله رأس هذا الطريق و شعب الايمان منازل هذا الطريق التي بين أوله و غايته و ما بين المنزلين أحواله و أحكامه و لما كان الصراط المستقيم مما تنزلت به الملائكة المعبر عنها بالأرواح العلوية و هي الرسل من اللّٰه إلى المصطفين من عباده المسمين أنبياء و رسلا جعل اللّٰه بينها و بين من تنزل عليه من هؤلاء الأصناف نسبا جوامع بينهما بتلك النسب يكون الإلقاء من الملائكة و بها يكون القبول من الأنبياء فكل من استقام بما أنزل على هؤلاء المسمين أنبياء و رسلا من البشر بعد ما آمن بهم أنهم رسل اللّٰه و أنهم أخذوا ما جاءوا به عن رسل آخرين ملكيين تنزلت الملائكة عليهم أيضا بالبشرى و كانت لمن هذه صفته جلساء

[الأرواح العلوية و الاسم الذي تولاها من الحضرة الإلهية]

و لما كانت هذه الأرواح العلوية حية بالذات كان الاسم الذي تولاها من الحضرة الإلهية الاسم الحي كما كان المتولي من الأسماء الإلهية لمن كانت حياته عرضية مكتسبة الاسم المحيي فما عقل الملك قط الأحياء بخلاف البشر فإنهم كانوا أمواتا فأحياهم ثم يميتهم ثم يحييهم : و لأهل هذه الحياة العرضية من العناصر ركن الماء قال تعالى



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