Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

(وصية)

عليك بمراقبة اللّٰه عزَّ وجلَّ فيما أخذ منك و فيما أعطاك فإنه تعالى ما أخذ منك إلا لتصبر فيحبك فإنه ﴿يُحِبُّ الصّٰابِرِينَ﴾ [آل عمران:146] و إذا أحبك عاملك معاملة المحب محبوبه فكان لك حيث تريد إذا اقتضت إرادتك مصلحتك و إذا لم تقتض إرادتك مصلحتك فعل بحبه إياك معك ما تقتضيه المصلحة في حقك و إن كنت تكره في الحال فعله معك فإنك تحمد بعد ذلك عاقبة أمرك فإن اللّٰه غير متهم في مصالح عبده إذا أحبه فميزانك في حبه إياك أن تنظر إلى ما رزقك من الصبر على ما أخذه منك و رزأك فيه من مال أو أهل أو ما كان مما يعز عليك فراقه و ما من شيء يزول عنك من المألوفات إلا و لك عوض منه عند اللّٰه إلا اللّٰه كما قال بعضهم

لكل شيء إذا فارقته عوض *** و ليس لله إن فارقت من عوض

فإنه لا مثل له و كذلك إذا أعطاك و أنعم عليك و من جملة ما أنعم به عليك و أعطاك الصبر على ما أخذه منك فأعطاك لتشكر كما أخذ منك لتصبر فإنه تعالى يحب الشاكرين و إذا أحبك حب الشاكرين غفر لك «قال رسول اللّٰه ﷺ في رجل رأى غصن شوك في طريق الناس فنحاه فشكر اللّٰه فعله فغفر له» فإن الايمان بضع و سبعون شعبة أدناها إماطة الأذى عن الطريق و هو ما ذكرناه و أرفعها قول لا إله إلا اللّٰه فالمؤمن الموفق يبحث عن شعب الايمان فيأتيها كلها و بحثه عن ذلك من جملة شعب الايمان فذلك هو المؤمن الذي حاز الصفة و ملأ يديه من الخير و ما شكرك اللّٰه بسبب أمر أتيته مما شرع لك الإتيان به إلا لتزيد في أعمال البر كما أنك إذا شكرته على ما أنعم به عليك زادك من نعمه لقوله ﴿لَئِنْ شَكَرْتُمْ لَأَزِيدَنَّكُمْ﴾ [ابراهيم:7]



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