الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

﴿مَنْ خَفَّتْ مَوٰازِينُهُ فَأُمُّهُ هٰاوِيَةٌ وَ مٰا أَدْرٰاكَ مٰا هِيَهْ نٰارٌ حٰامِيَةٌ﴾ و لا تمتاز الفرق إلا بالحدود فمنهم النازل بمنازل النحوس و منهم النازل بمنازل السعود

[سر المقام الشامخ في البرازخ]

و من ذلك سر المقام الشامخ في البرازخ من الباب الأحد و الستين البرزخ بين بين و هو مقام بين هذين فما هو أحد هما بل هو مجموع الاثنين فله العز الشامخ و المجد الباذخ و المقام الراسخ و علم البرازخ له من القيامة الأعراف و من الأسماء الاتصاف فقد حاز مقام الإنصاف فما هو عين الاسم و لا عين المسمى و لا يعرف هويته إلا من يفك المعمى و قد استوى فيه البصير و الأعمى هو الظل بين الأنوار و الظلم و الحد الفاصل بين الوجود و العدم و إليه ينتهي الطريق الأمم و هو حد الوقفة بين المقامين لمن فهم له من الأزمنة الحال اللازم فهو الوجود الدائم البرزخ جامع الطرفين و الساحة بين العلمين له ما بين النقطة و المحيط و ليس بمركب و لا بسيط حظه من الأحكام المباح و لهذا كان له الاختيار و السراح لم يتقيد بمحظور و لا واجب و لا مكروه و لا مندوب إليه في جميع المذاهب

[سر النشر و الحشر]

و من ذلك سر النشر و الحشر من الباب 62 النشر ضد الطي و به يتبين الرشد من الغي النشر ظهور فهو نور على نور الحشر جمع ما فيه صدع بالحشر يقع الازدحام و به يكون الالتحام لو لا الحشر ما زوجت النفوس بأبدانها و لا أقيمت المأدب بميدانها قبور الأرواح أجسامها و قبور الأجسام أزامها ففي سجن الأشباح سراح الأرواح فلها الرواح و الارتياح في الانفساح و إن تقيدت بصور جسدية فإن لها القليبات الأبدية و ما لها نعت إلا الأحدية و إن كانت لا ننفك عن صورة فإنها في أعز سورة فإذا بعثت الأجسام من قبورها و حصل للعرض عليها ما في صدورها صدق الخبر الخبر و ما بقي للريب في ذلك من أثر فمن حار فاز و ليس للبازي إلا ما حاز فاعبر و لا تعمر فإن الدنيا نهر و بحر يحكم فيها مد و جز و الإنسان على نهرها جسر

[سر المقامة و الكرامة]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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