الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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صدقناه و نزهناه و بقوله قال اللّٰه في غير موضع من كتابه و وعده و وعيده و تجاوزه عن سيئاتنا في خطابه و إضافة الكلام إليه صدقناه و من كونه أمرنا أن نعلمه و نصب الأدلة لنا محررة على الوصول إلى العلم به و البحث عنه لنتبين أنه الحق في قوله ﴿سَنُرِيهِمْ آيٰاتِنٰا فِي الْآفٰاقِ وَ فِي أَنْفُسِهِمْ﴾ [فصلت:53] لنستدل بما ذكره عليه طلبناه و لما علمنا أنه ما طلبنا و لا طلب منا أن نطلبه إلا و لا بد أن نجده إما بالوصول إليه أو بالعجز عن ذلك و على كلا الأمرين فوجدناه فلما ظفرنا به في زعمنا و أردنا أن نقره على ما وجدناه تحول سبحانه لنا في غير الصورة التي ظفرنا به فيها ففقدناه و من قوله ﴿أَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضاً حَسَناً﴾ [الحديد:18] علمنا بتقييد القرض بالحسن أنه يريد أن نرى النعمة منه و إنها نعمته فعلى هذا الحد من المعرفة بالإنعام و النعم أقرضناه و لما ظهر لنا سبحانه عند صور التجلي في صور العالم لنحكم عليه بما تعطيه حقائق ما ظهر فيها من الصور و قد ظهر في صور تقتضي الملل و «أخبر ﷺ أن اللّٰه لا يمل حتى تملوا» فأشار إن ملل الإنسان ملله فأثبته للإنسان و نفاه ﴿وَ مٰا رَمَيْتَ إِذْ رَمَيْتَ وَ لٰكِنَّ اللّٰهَ رَمىٰ﴾ [الأنفال:17] و مع هذا التعريف مللناه و بما أطلعنا عليه من أسراره في عباده و اطلع على أسرار عباده بما أطلعوه عليه من ذلك من هذه النسبة لا من كونه عالما بها من غير نسبة اطلاعنا إياه عليها كاشفناه و من كونه غيورا كما «ذكره رسول اللّٰه ﷺ في حديث الغيرة في خبر سعد إن اللّٰه غيور و من غيرته حرم الفواحش سترناه» و من قوله ﴿تُقَدِّمُوا بَيْنَ يَدَيْ﴾ [الحجرات:1] ﴿نَجْوٰاكُمْ صَدَقٰاتٍ﴾ [المجادلة:13] و من كونه من ورائنا محيطا : حجبناه و من كونه أنزل نفسه منا منزلة السر و أخفى : مع شدة ظهوره بكونه صورة كل شيء و قال ﴿قُلْ سَمُّوهُمْ﴾ [الرعد:33]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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