الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿إِنَّمٰا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللّٰهِ لاٰ نُرِيدُ مِنْكُمْ جَزٰاءً وَ لاٰ شُكُوراً﴾ [الانسان:9] فهو موصل أمانة كانت بيده و الكرم عطاء بعد سؤال و الجود عطاء قبل السؤال و السخاء عطاء بقدر الحاجة و الإيثار عطاؤك ما أنت محتاج إليه في الحال و هو الأفضل و في الاستقبال و هو دون المعطي في الحال و لكل عطاء اسم إلهي إلا الإيثار فالله تعالى وهاب كريم جواد سخي و لا يقال فيه عزَّ وجلَّ مؤثر و قد قررنا أنه عالم بكل شيء فكيف يكون السخاء عطاء عن سؤال بلسان الحال و هو القائل عز و جل ﴿أَعْطىٰ كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ﴾ [ طه:50] فما ترك لمخلوق ما يحتاج إليه من حيث ما هو مخلوق تام

[كل إنسان محتاج إلى كمال]

فاعلم إن ثم تماما و كمالا فالتمام إعطاء كل شيء خلقه و هذا لا سؤال فيه و لا يلزم إعطاء الكمال و يتصور السؤال و الطلب في حصول الكمال فإنها مرتبة و المرتبة إذا أوجدها الحق في العبد أعطاها خلقها و ما هي من تمام المعطي إياه و لكنها من كماله و كل إنسان و طالب محتاج إلى كمال أي إلى مرتبة و لكن لا يتعين فإنه مؤهل بالذات لمراتب مختلفة و لا بد أن يكون على مرتبة ما من المراتب فيقوم في نفسه أن يسأل اللّٰه في أن يعطيه غير المرتبة لما هو عليه من الأهلية لها فيتصور السؤال في الكمال و هو مما يحتاج إليه السائل في نيل غرضه فإنه من تمام خلق الغرض أن يوجد له متعلقة الذي يكون به كماله فإن تمامه تعلقه بمتعلق ما و قد وجد فإن أعطاه اللّٰه ما سأله بالغرض فقد أعطاه ما يحتاج إليه الغرض و ذلك هو السخاء فإن السخاء عطاء على قدر الحاجة و قد يعطيه اللّٰه ابتداء من غير سؤال نطق لكن وجود الأهلية في المعطي إياه سؤال بالحال كما تقول إن كل إنسان مستعد لقبول استعداد ما يكون به نبيا و رسولا و خليفة و وليا و مؤمنا لكنه سوقة و عدو و كافر و هذه كلها مراتب يكون فيها كمال العبد و نقصه «قال ﷺ كمل من الرجال كثيرون و لم يكمل من النساء إلا مريم بنت عمران و آسية امرأة فرعون» و كل شخص ما عدا هؤلاء مستعد بإنسانيته لقبول ما يكون له به هذا الكمال فبالأهلية هو محتاج إليه و للحرمان وجد السؤال بالحال فحضرة السخاء فيها روائح من حضرة الحكمة فإن اللّٰه عزَّ وجلَّ ما منع إلا لحكمة و لا أعطى إلا لحكمة ﴿وَ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ﴾ [الزخرف:84]



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