الفتوحات المكية

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و قلناه بعلم و اعتقاد *** فجاء لشكرنا منه المزيد

فكان هو المراد بعين قولي *** كما قد كان في الأصل المريد

له حكم التحكم في وجودي *** هو الفعال فينا ما يريد

و ليس يريد إلا كل ما لا *** وجود له فحقق ما أريد

فليس يريد عيني حال كوني *** فكون الكائنات هو الوجود

فقد شهدت إرادته عليه *** بأن مراده أبدا فقيد

[إن يوم الدين يوم الجزاء]

فلما قال مجدني عبدي عند قول المصلي ملك يوم الدين علمنا أنه قال أعطاني عبدي المجد و الشرف على العالم في الدنيا و الآخرة لأني جازيت العالم على أعمالهم في الدنيا و الآخرة فيوم الدين هو يوم الجزاء فإن الحدود ما شرعت في الشرائع الأجزاء و ما أصابت المصائب من أصابته الأجزاء بما كسبت يده مع كونه يعفو عن كثير قال تعالى ﴿وَ مٰا أَصٰابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمٰا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَ يَعْفُوا عَنْ كَثِيرٍ﴾ و كذلك ما ظهر من الفتن و الخراب و الحروب و الطاعون فهو كله جزاء بأعمال عملوها استحقوا بذلك ما ظهر من الفساد في البر من خسف و غير ذلك و قحط و وباء و قتل و أسر و كذلك في البحر مثل هذا مع غرق و تجرع غصص لزعزع ريح متلفة قال تعالى ﴿ظَهَرَ الْفَسٰادُ﴾ [الروم:41] و هو ما ذكرناه و من جنس ما قررناه ﴿فِي الْبَرِّ وَ الْبَحْرِ بِمٰا كَسَبَتْ أَيْدِي النّٰاسِ﴾ [الروم:41] أي بما عملوا ﴿لِيُذِيقَهُمْ بَعْضَ الَّذِي﴾ [الروم:41] ﴿عَمِلُوا﴾ [البقرة:25] و هذا عين الجزاء و هو في الدنيا هو فيوم الدنيا يوم الجزاء و يوم الآخرة هو يوم الجزاء غير أنه في الآخرة أشد و أعظم لأنه لا ينتج أجرا لمن أصيب و قد ينتج في الدنيا أجرا لمن أصيب و قد لا ينتج فهذا هو الفرقان بين يوم الدنيا و يوم الآخرة و قد تعقب المصيبة لمن قامت به توبة مقبولة و قد يكون في الدنيا حكم يوم الآخرة في عدم قبول التوبة و هو قوله في طلوع الشمس من مغربها إنه ﴿لاٰ يَنْفَعُ نَفْساً إِيمٰانُهٰا لَمْ تَكُنْ آمَنَتْ مِنْ قَبْلُ أَوْ كَسَبَتْ فِي إِيمٰانِهٰا خَيْراً﴾ [الأنعام:158]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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