الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و هو وحي أمرها و اختلفت الأسماء لاختلاف المحال و الصور و عم بالسماء و الأرض ما علا من العالم و ما سفل و ما في الوجود إلا عال و سافل و من أسمائه العلى و رفيع الدرجات فأمر الأسماء و أقواتها أعيان آثارها في الممكنات فبالآثار تعقل أعيانها فلها البقاء بآثارها فقوت الاسم أثره و تقديره مدة حكمه في الممكن أي ممكن كان و من هذه الحضرة ﴿وَ إِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلاّٰ عِنْدَنٰا خَزٰائِنُهُ وَ مٰا نُنَزِّلُهُ إِلاّٰ بِقَدَرٍ مَعْلُومٍ﴾ [الحجر:21] و الخزائن عند اللّٰه تعلو و تسفل فأعلاها كرسيه و هو علمه و علمه ذاته و أدنى الخزائن ما خزنته الأفكار في البشر و ما بين هذين خزائن محسوسة و معقولة و كلها عند اللّٰه فإنه عين الوجود فهي حضرة جامعة للاعيان و النسب و الحدوث و القدم فالخلق و الخالق و المقدور و القادر و الملك و المالك كل واحد لصاحبه أمر و قوت فأمره في سمائه و هو علوه و قوته في أرضه و هو دنوه فإنا من أهل الأرض و نحن المخاطبون بهذا الخطاب ليس غيرنا و لهذا كان القرآن منزلا و النزول لا يكون إلا من علو كما العروج لا يكون إلا إلى علو

فمن سفل إلى علو عروج *** و من علو إلى سفل نزول

و كل جاء في التنزيل فينا *** فمهما قلت فانظر ما تقول

و لما لم يكن في الكون إلا علة و معلول علمنا إن الأقوات العلوية و السفلية أدوية لإزالة أمراض و لا مرض إلا الافتقار فكل من في السماوات و من في الأرض ﴿آتِي الرَّحْمٰنِ عَبْداً﴾ [مريم:93] و السماء و الأرض أتيا إلى الرحمن طائعين : و كل عبد فقير لسيده و خادم القوم سيدهم لقيامه بمصالحهم و العبد هو من يقوم في خدمة سيده لبقاء حقيقة العبودة عليه و السيد يقوم بمصالح عبيده لبقاء اسم السيادة عليه فلو فنى الملك فنى اسم المالك من حيث ما هو مالك و إن بقيت العين فتبقى مسلوبة الحكم لأنه لا فائدة للأشياء لا بأحكامها لا بأعيانها و لا تكون أحكامها إلا بأعيانها فأعيانها مفتقرة إلى أحكامها و أحكامها مفتقرة إلى أعيانها و أعيان من تحكم فيهم فما ثم إلا حكم و عين فما ثم إلا مفتقر و مفتقر إليه ﴿فَلِلّٰهِ الْمَكْرُ جَمِيعاً يَعْلَمُ مٰا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ﴾ [الرعد:42]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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