الفتوحات المكية

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«حضرة الحفظ»

إن الحفيظ عليم بالذي حفظه *** و ما سواه فإن العقل قد لفظه

فمن يقول به يليقه في خلدي *** مع الذي عين الكتاب و الحفظة

إذا تلفظ شخص باسمه تره *** في نفسه طالبا بما به لفظه

[الحفظ الإلهي يمنع بين العبد و هواه]

يدعى صاحب هذه الحضرة عبد الحفيظ قال تعالى ﴿وَ لاٰ يَؤُدُهُ حِفْظُهُمٰا﴾ [البقرة:255] و قال تعالى ﴿إِنَّنِي مَعَكُمٰا أَسْمَعُ وَ أَرىٰ﴾ [ طه:46] يخاطب موسى و هارون عليه السّلام و قال في سفينة نوح ع ﴿تَجْرِي بِأَعْيُنِنٰا﴾ [القمر:14] يشير إلى أنه يحفظها لأن المحفوظ لا يختفي عنه و من الناس من يحفظه الحفظ لأنه يريد أن يخلو بهواه و الحفظ الإلهي يمنع من ذلك و يحول بينه و بين هواه ﴿أَ لَمْ يَعْلَمْ بِأَنَّ اللّٰهَ يَرىٰ﴾ [العلق:14] فمن عصى اللّٰه و اتبع هواه فما عصى إلا مجاهرة و لكن بعد عمى القلب حتى لا يجتمع النظرتان إذ لو اجتمعتا لاحترق الكون فإن بصر الحق إذا اجتمع به بصر العبد احترق العبد من فوره و معلوم أن اللّٰه يدركه ببصره الآن في حق العبد فإن الحق ليس في الآن لكن ما اجتمع بصر العبد معه فيعلم بالمقدمتين ما ينتج بينهما فإن باجتماع البصرين وقع الحرق فما انحفظ العالم لا بكون البصرين ما اجتمعا على رؤية الكون و لذلك وصف نفسه إذا تجلى أن يكون رداء الكبرياء على وجهه فلا يرتفع أبدا فإذا رأينا الحق متى رأيناه بأبصارنا نراه من حيث لا يرانا كما يرانا من حيث لا نراه فإنه يرانا عبيدا و نراه إلها و نراه به و يرانا بنا و مهما رآنا به فلا نراه به بل و هي الرؤية العامة و رؤية الخواص أن يروه به و يراه بهم فهو الذي يحفظ عليهم جودهم ليفيدهم و يستفيد من يستفيد منهم حتى نعلم إلى من هو دونه فهو الحفيظ المحفظ و لما سرى الحفظ في العالم فقال ﴿إِنَّ عَلَيْكُمْ لَحٰافِظِينَ﴾ [الإنفطار:10] و قال



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