الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

بالرفعة الأولى المتكبر بالرفعة بعد النزول فحضرة الخفض سلطانها في المحدث كان المحدث ما كان و إنما قلنا كان المحدث ما كان من أجل صور التجلي فإنها محدثة و من أجل إتيان الذكر الذي هو القرآن كلام اللّٰه فإنه محدث الإتيان قال تعالى ﴿مٰا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنْ رَبِّهِمْ مُحْدَثٍ﴾ [الأنبياء:2] و ليس إلا القرآن و قد حدث عندهم بإتيانه فلذلك قلنا كان الحادث ما كان فمن هذه الحضرة يكون حكم الخافض و المخفوض أ لا ترى إلى حروف الخفض هي الخافضة و الحرف في أدنى الدرجات و مع ذلك فلها أثر الخفض في الأسماء مع علو درجة الأسماء فتقول أعوذ بالله فالباء خافضة و معمولها الهاء من كلمة اللّٰه فهي التي خفضت الهاء من الكلمة فأثرت في الكلمة بحقيقتها و إن كانت الأسماء أعلى في الرتبة منها فالعالم و إن كان في مقام الخفض و رتبته رتبة الخفض فإنه بعضه لبعضه كأداة الخفض في اللسان لا يخفض المتكلم الكلمة إلا بها كذلك ما لا يفعله الحق من الأشياء إلا بوساطة الأشياء و لا يمكن غير ذلك فلا بد من حقيقته هذا أن ينزل إلى رتبة الخفض ليتصرف في أدوات الخفض بحسب ما هي عليه تلك الأدوات من الأحكام و هي كثيرة كأداة الباء على اختلاف مراتبها و هي في كل ذلك لا تعطي إلا الخفض فلها رتبة القسم و رتبة الاستعانة و رتبة التبعيض و التأكيد و النيابة مناب الغير و كذلك من و إلى و في و جميع أدوات الخفض لها صور في التجلي فتظهر بحكم واحد و عين واحدة في مراتب كثيرة فمن على كل حال حكمها الخفض و ذاتها معلومة فهي لا تتغير في الحكم و لا في العين و هي لابتداء الغاية خرجت من الدار و تكون للتبعيض أكلت من الرغيف و تكون للتبيين شربت من الماء فما تغير لها عين و لا حكم في الخفض ثم إنه إذا دخل بعضها على بعض صير المدخول عليه فيها اسما و زال عنه حكم الحرفية فيرجع خفضه بالإضافة كسائر الأسماء المضافة و أبقى عليه بناءه حتى لا يتغير عن صورته قال لشاعر



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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