الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فطلب الدعاء من عباده و طلب العباد الإجابة منه فالكل طالب و مطلوب و قد قام الدليل أن الحوادث لا تقوم به فلا يستقل بكل طلب في ذاته لأن الطلب من الحادث حادث و يستحيل أن يقوم به مثل هذا الطلب فلا بد من طلب وجود ما يقوم به هذا الطلب الحادث و هو قوله إذا أردناه و الطلب إرادة سواء طلبك لنفسه أو طلبك لك على كل حال الحاصل لا يبتغى من الوجه الذي يطلب فإنه من ذلك الوجه ليس بحاصل فلا يصح الوجود أصلا إلا من أصلين الأصل الواحد الاقتدار و هو الذي يلي جانب الحق و الأصل الثاني القبول و هو الذي يلي جانب الممكن فلا استقلال لواحد من الأصلين بالوجود و لا بالإيجاد فالأمر المستفيد الوجود ما استفاده إلا من نفسه بقبوله و ممن نفذ فيه اقتداره و هو الحق غير أنه لا يقول في نفسه إنه موجد نفسه بل يقول إن اللّٰه أوجده و الأمر على ما ذكرناه فما أنصف الممكن نفسه و آثر بهذا الوصف ربه فلما علم اللّٰه أنه آثر ربه على نفسه بنسبة الإيجاد إليه أعطاه الظهور بصورته جزاء فلا أكمل من العالم لأنه لا أكمل من الحق و ما كمل الوجود إلا بظهور الحادث و لما كان الأمر بهذه المثابة في التوقف و عدم الاستقلال من الطرفين نبه الحق على ذلك «بقوله قسمت الصلاة بيني و بين عبدي نصفين فنصفها لي و نصفها لعبدي» و هو أيضا أعني التقسيم موجود في استخلاف العبد و في وكالة الحق فيما هو فيه العبد مستخلف فاستقل الوجود و كمل بالحادث و لما كان الحق غيورا أن يذكر معه سواه تجلى للعالم في صور المحدثات و علموه فيها أعلاما منه للعالم إنه غني عن العالمين بما رأيتموه في ذاته من ظهوره بالتجلي في صور المحدثات فسواء ظهوركم و عدمكم يقول للممكن فعند ذلك ذل الممكن بالفعل في نفسه فوقع منه ما خلقه اللّٰه له و زال عنه عز الاستعداد بالقبول في الإيجاد إذا رأى أعيان الصور التي تكون عن قبولها و اقتدار الحق قد ظهر الحق بها فلم تكن الحاجة إلى الممكنات في قبولها و الأمر قد حصل و صح قوله



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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