الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

أي كما انطلق عليكم اسم الأمة كذلك ينطلق اسم أمة على كل دابة و ﴿طٰائِرٍ يَطِيرُ بِجَنٰاحَيْهِ﴾ [الأنعام:38] و كما إن كل أمة و كل عين في الوجود ما سوى الحق تفتقر في إيجادها إلى موجد نقول بتلك النسبة في كل واحد إنه مثل للآخر في الافتقار إلى اللّٰه و بهذا يصح قطعا إن اللّٰه ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] بزيادة الكاف أو بفرض المثل فإنك إذا عرفت أن كل محدث لا يقبل المثلية كما قررناه لك فالحق أولى بهذه الصفة فلم تبق المثلية الواردة في القرآن و غيره إلا في الافتقار إلى اللّٰه الموجد أعيان الأشياء

[علم أهل اللّٰه بالأشياء:المعرفة الصوفية:المعرفة الغير العادية]

ثم ارجع و أقول إن كل واحد من أهل اللّٰه لا يخلو أن يكون قد جعل اللّٰه علم هذا الشخص بالأشياء في جميع القوي أو في قوة بعينها كما قررنا إما في الشم و هو صاحب علم الأنفاس و إما في النظر فيقال هو صاحب نظر و إما في الضرب و هو من باب اللمس بطريق خاص و لذلك كني عن ذلك بوجود برد الأنامل فينسب صاحب تلك الصفة التي بها تحصل العلوم إليها فيقال هو صاحب كذا كما قررنا إن الصفة هي عين الموصوف في هذا الباب أعني الصفة النفسية فكما رجع المعنى الذي يقال فيه إنه لا يقوم بنفسه صورة قائمة بنفسها رجعت الصورة التي هي هذا العالم معنى لتحققه بذلك المعنى و تألفه به كما تألفت هذه المعاني فصار من تأليفها ذات قائمة بنفسها يقال فيها جسم و إنسان و فرس و نبات فافهم فيصير صاحب علم الذوق ذوقا و صاحب علم الشم شما و معنى ذلك أنه يفعل في غيره ما يفعل الذوق فيه إن كان صاحب ذوق أو ما فعل الشم فيه إن كان صاحب شم فقد التحق في الحكم بمعناه و صار هو في نفسه معنى يدرك به المدرك الأشياء كما يدرك الرائي بالنظر في المرآة الأشياء التي لا يدركها في تلك الحالة إلا بالمرآة كان للشيخ أبي مدين ولد صغير من سوداء و كان أبو مدين صاحب نظر فكان هذا الصبي و هو ابن سبع سنين ينظر و يقول أرى في البحر في موضع صفته كذا و كذا سفنا و قد جرى فيها كذا و كذا فإذا كان بعد أيام و تجيء تلك السفن إلى بجاية مدينة هذا الصبي التي كان فيها يوجد الأمر على ما قاله الصبي فيقال للصبي بما ذا ترى فيقول بعيني ثم يقول لا إنما أراه بقلبي ثم يقول لا إنما أراه بوالدي إذا كان حاضرا و نظرت إليه رأيت هذا الذي أخبركم به و إذا غاب عني لا أرى شيئا من ذلك



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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